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रियो में मुक्केबाजों की नाकामी की मैं जिम्मेदारी लेता हूं : कोच संधू

रियो ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों के पदक नहीं जीत पाने की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह संधू ने कहा कि पिछले चार साल से चला आ रहा प्रशासनिक गतिरोध भी उस खेल की दुर्दशा के लिये जिम्मेदार है जो कभी तेजी से प्रगति कर रहा था।
रियो में मुक्केबाजों की नाकामी की मैं जिम्मेदारी लेता हूं : कोच संधू

संधू ने प्रेस ट्रस्ट से कहा , मैं निजी तौर पर आहत हूं और इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं। लेकिन मेरा मानना है कि मौजूदा हालात में मेरे लड़कों का प्रदर्शन संतोषजनक था। उन्हें काफी कठिन ड्रा मिले थे। पिछले चार साल से क्या हो रहा है,  मैं जानता हूं लेकिन मुझे लगता रहा कि हालात सुधरेंगे।

बीजिंग में विजेंदर सिंह के कांस्य पदक और लंदन ओलंपिक में एमसी मेरीकाम को मिले कांस्य पदक के बाद मुक्केबाजी को भारत की पदक उम्मीद माना जा रहा था। रियो ओलंपिक में भारत के तीन मुक्केबाजों में से कम से कम एक पदक की उम्मीद थी लेकिन वे नाकाम रहे। संधू ने कहा,  किस्मत ने हमारा साथ नहीं दिया। मेरे सभी लड़के पदक विजेताओं से हार गए। मैं किसी को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा लेकिन हमें यथार्थवादी होना होगा। ड्रा काफी कठिन थे। शिवा थापा (56 किलो) को क्यूबा के रोबेइसी रामिरेज ने हराया जिसने बाद में स्वर्ण पदक जीता। वहीं मनोज कुमार (64 किलो) भी स्वर्ण पदक विजेता उजबेकिस्तान के फजलीद्दीन गेइबनाजारोव से हारे। विकास कृष्णन को रजत पदक विजेता बेक्तेमिर मेलिकुजेव ने हराया। उन्होंने कहा,  मैं गुजारिश करता हूं कि हमारे मुक्केबाजों की स्थिति को समझे। हमें अपने अहम को भूलना होगा। सबसे पहले सक्रिय राष्ट्रीय महासंघ का होना जरूरी है क्योंकि उसके बिना हम अनाथ हैं। संधू ने कहा , मजबूत नींव के बिना कुछ नहीं हो सकता। किसी भी खेल के लिये सक्रिय महासंघ होना बहुत जरूरी है। महासंघ के बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज नहीं सुनी जायेगी और तकनीकी प्रतिनिधित्व भी नहीं होगा। पिछले दो दशक से अधिक समय से राष्ट्रीय टीम से जुड़े संधू ने कहा कि मुक्केबाजों को तैयारी के लिये सारी सुविधायें मिली लेकिन प्रतिस्पर्धी विदेशी अनुभव नहीं मिल सका। उन्होंने कहा , मैने इस तरह की सुविधायें पहले कभी नहीं देखी। उन्हें सब कुछ मिला और साइ महानिदेशक इंजेती श्रीनिवास ने काफी सहयोग किया लेकिन निलंबन के कारण हमें कजाखस्तान या उजबेकिस्तान या क्यूबा में अभ्यास सह प्रतिस्पर्धाओं में बुलाया नहीं गया जहां हमारे मुक्केबाजों को दबाव के बिना सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों के खिलाफ खेलने का अच्छा अभ्यास मिलता।

उन्होंने कहा , इसलिये मैं बार-बार कह रहा हूं कि हमें मजबूत महासंघ की जरूरत है। हमें भारत को फिर विश्व मुक्केबाजी सीरिज में लाना होगा। ओलंपिक में उन्हीं मुक्केबाजों का दबदबा रहा जो ये सीरिज और अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ की पेशेवर लीग में खेले।

 

एजेंसी

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