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साइकिल नहीं तो क्या : रणनीति बना रहे हैं सपा के दोनों खेमे

साइकिल चुनाव निशान को लेकर चुनाव आयोग में फैसला सुरक्षित रखे जाने के बीच सपा के दोनों खेमों के नेताओं ने आज विभिन्न विकल्पों और संभावनाओं पर चर्चा की।
साइकिल नहीं तो क्या : रणनीति बना रहे हैं सपा के दोनों खेमे

चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव निशान पर फैसला सुरक्षित रखा है। ऐसे में सपा के दोनों धड़ों के नेता विकल्पों पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में पहले चरण की चुनावी प्रक्रिया के तहत नामांकन दाखिल करने में काफी कम समय बचा है।

राज्य में सात चरणों में मतदान होंगे। मतदान 11 फरवरी से शुरू होगा।

मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव अपने-अपने आवास पर हैं और आवास के बाहर टिकट पाने के इच्छुक लोगों की भारी भीड़ जमा है। अखिलेश के करीबी माने-जाने वाले सपा के विधानपरिषद सदस्य सुनील सिंह साजन ने भाषा से कहा, अखिलेश जी हमारा चेहरा हैं और हम उसी पर वोट मांगेंगे। यदि चुनाव आयोग नया चुनाव निशान देता है तो चुनौती खड़ी होगी लेकिन हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं। हम मुख्यमंत्री द्वारा पिछले पांच साल में किये गये कार्य तथा जनता के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं।

मुलायम खेमा आश्वस्त है कि साइकिल उसी के पास रहेगी। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, सपा के दोनों खेमों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है क्योंकि दोनों धड़ों द्वारा घोषित अधिकांश उम्मीदवार एक ही हैं। चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद हम अपनी रणनीति तय करेंगे।

दिल्ली में चुनाव आयोग के समक्ष पक्ष रखने के लिए लखनऊ लौटे शिवपाल सिंह यादव से जब हवाईअडडे पर सवाल किया गया तो उनका जवाब था, मुझे उम्मीद है कि चुनाव आयोग नेताजी (मुलायम) के पक्ष में फैसला देगा। स्थिति जल्द स्पष्ट हो जाएगी।

अखिलेश द्वारा नियुक्त सपा के राज्य अध्यक्ष नरेश उत्तम ने कहा कि पूरी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ है। अखिलेश को सर्वसम्मति से चुना गया है। हमें यकीन है कि साइकिल हमें ही मिलेगी।

मुलायम से कल मकर संक्रान्ति के मौके पर मिलने गये उत्तम ने कहा कि पिता-पुत्र एक साथ हैं। हम अखिलेश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे और नेताजी हमें मार्गदर्शन देंगे। वह पिता ही नहीं बल्कि हमारे नेता भी हैं।

मुलायम ने बेटे अखिलेश के प्रति नरमी दिखाते हुए कह दिया है कि अखिलेश ही अगले मुख्यमंत्री होंगे हालांकि उनके इस ऐलान से पिता पुत्र की दूरियां कम नहीं हुई हैं। मामला पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अटका हुआ है क्योंकि अखिलेश यह पद छोड़ना नहीं चाहते।

उधर पार्टी में अंतर्कलह से अप्रभावित अखिलेश अपने निकट सहयोगियों के साथ चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने में लगे हैं।

पार्टी के भीतर के लोगों का कहना है कि अखिलेश उम्मीदवारों की नयी सूची तैयार कर रहे हैं। दागी नामों को निकाल रहे हैं और पात्र लोगों को टिकट दे रहे हैं।

अखिलेश को विवादित राष्ट्रीय अधिवेशन में एक जनवरी को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। उसके बाद से ही वह संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं।

शिवपाल द्वारा बाहर किए गए कई जिलाध्यक्षों को अखिलेश ने बहाल किया और सपा प्रमुख की हैसियत से चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची भी जारी की।

इस बीच सबकी निगाहें अब चुनाव आयोग पर हैं, जिसने दोनों पक्षों से कहा है कि फैसला जल्द सुनाया जाएगा।

पूर्व की परंपराओं, चुनाव निशान आदेश 1968 और जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए अखिलेश खेमे ने तर्क दिया कि संख्या बल चूंकि मुख्यमंत्री के पास है इसलिए साइकिल चुनाव निशान उन्हें ही मिलना चाहिए।

मुलायम खेमे का कहना है कि सपा (मुलायम) और सपा (अखिलेश) जैसा कोई विभाजन नहीं है इसलिए किसी एक खेमे को चुनाव निशान देने का आयोग का अधिकारक्षेत्र नहीं है। मुलायम खेमे की यह दलील भी है कि अखिलेश के करीबी रामगोपाल यादव द्वारा एक जनवरी को बुलाये गये अधिवेशन में चूंकि मुलायम को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने का कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ और पार्टी एक है तो चुनाव निशान (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश 1968 का पैरा-15 इस मामले में लागू नहीं होता।

भाषा 

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