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भाजपा में दाल गलनी मुश्किल जान कुछ अनोखा करने के फेर में स्वामीप्रसाद मौर्य

बसपा से इस्तीफा देकर अलग हुए उत्तर प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा-भाजपा सहित सभी विकल्प खुले रखे हुए हैं
भाजपा में दाल गलनी मुश्किल जान कुछ अनोखा करने के फेर में स्वामीप्रसाद मौर्य

बहुजन समाज पार्टी में लंबी पारी खेलने के बाद इस्तीफा देकर बाहर आए स्वामी प्रसाद मौर्य कह तो रहे हैं कि उन्होंने अपने तमाम विकल्प खोले हुए हैं, लेकिन अभी बेचैन हैं कि भाजपा में उनकी बात जम नहीं रही है। ऐसे में उनके पास विकल्प बचा हुआ है अपनी अलग पार्टी बनाने का। इसके संकेत उन्होंने साफ दिए है कि जुलाई पहले सप्ताह में इस बारे में घोषणा करेंगे। खबर है कि दिल्ली में एक वरिष्ठ भाजपा नेता से भेंट करने वह आए थे लेकिन उनकी मुलाकात अच्छी नहीं रही। संकेत है कि अगर भाजपा में उनकी बात नहीं बनती है तो बिहार के जीतन मांझी की तरह बिना शामिल हुए अति पिछड़े वर्ग को बसपा से दूर और भाजपा के पास लाने का काम कर सकते हैं। खुद स्वामी प्रसाद मौर्य ने आज कहा कि वह कुछ अनोखा करने  के फेर में हैं।  

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती को कोसते हुए अपना राजनीतिक निशाना अभी बसपा को नुकसान पहुंचाने पर ही रखा है। आउटलुक से बातचीत के दौरान उन्होंने यह जरूर माना कि आगे भी उनकी राह दलितों के मसीहा अंबेडकर और बसपा के संस्थापक कांशीराम के मिशन से जुड़ी होगी। उनका यह मानना है कि  मायावती की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के बजाय थैली भरने में ज्यादा दिलचस्पी है।

भाजपा के कई एजेंडे से भी उन्हें दिक्कत है और उनके कई स्टैंड भी भाजपा को समाहित करने मुश्किल लग रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के ओबीसी कोटे के भीतर कोटे के राजनीतिक दांव से सहमत नहीं हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में भाजपा इस पर बड़ा दांव चलने की तैयारी में है। साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा में रहते हुए मनुवाद और देवी-देवताओं पर तीखी प्रतिक्रियाओं के लिए बहुत खबरों में रहे हैं। ऐसे में भाजपा नेतृत्व के लिए उन्हें पार्टी में लेना मुश्किल हो रहा है।

बहरहाल, स्वामी प्रसाद मौर्य यह तो मान ही रहे हैं कि अभी उनका मकसद बसपा को नुकसान पहुंचाना है और उसमें वह सफल रहे। आउटलुक के इस सवाल के जवाब में कि उनके बसपा छोड़ने से सपा और भाजपा में से किसे ज्यादा फायदा हुआ, तो उन्होंने इसका गोलमोल सा जवाब देते हुए बसपा पर ही निशाना साधा। बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में वापसी होनी मुश्किल है। ऐसे में या तो वह भाजपा के साथ मिलने की अपनी कोशिशों को जारी रखेंगे या फिर भाजपा-सपा की मदद से नई पार्टी का गठन करेंगे। नई पार्टी से नुकसान बसपा के ही वोट बैंक हो होगा और सपा और भाजपा की चाह भी यही है।    

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