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बिहार निश्चित ही चुनौती, पर जीत तय- अमित शाह

बिहार विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। चुनाव परिणाम जो भी हो लेकिन सभी दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। मुख्य‍ मुकाबला भाजपानीत राजग और महागठबंधन (जदयू, राजद, कांग्रेस) के बीच है। लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में जीत की लय (दिल्ली को छोडक़र) बरकरार रखने के लिए भाजपा कड़ी मेहनत कर रही है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह आश्वत हैं कि इस चुनाव में भी जीत निश्चित है। शाह के व्यस्त कार्यक्रमों के बीच आउटलुक के विशेष संवाददाता ने पटना में विस्तार से बात की। पेश है प्रमुख अंश-
बिहार निश्चित ही चुनौती, पर जीत तय- अमित शाह

बिहार चुनाव में जीत को लेकर आप कितने आश्वस्त हैं?

बिहार विधानसभा चुनावों में जबर्दस्त जीत का भरोसा है। राज्य के हर कोने में हमें भारी समर्थन मिल रहा है। इसका अंदाज पार्टी और गठबंधन के साथियों की रैली में जनता के भारी उत्साह को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। राजग इन चुनावों में दो तिहाई बहुमत की तरफ बढ़ रहा है। पूरे राज्य में बदलाव की लहर चल रही है। हमारे कार्यकर्ता राज्य के सभी चालीस हजार गांवों में फैले हैं और वहां से मिल रही रिपोर्ट यही बताती है कि लोग अब बदलाव चाहते हैं।


इन चुनावों में प्रमुख मुद्दा क्या‍ है?
भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केवल एक मुद्दे पर चुनाव लड़ रहा है और वह है बिहार का विकास। भाजपा के विकासोन्मुख गवर्नेंस में लोगों का पूरा भरोसा है। बीते पंद्रह महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के विकास कार्यों के गवाह बिहार के मतदाता भी हैं। प्रधानमंत्री पहले ही बिहार के लिए एक लाख पैंसठ हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर चुके हैं। इस बात को भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि इस पैकेज की एक एक पाई बिहार के विकास के कामों के लिए इस्तेमाल हो। बिहार के मतदाता ने कांग्रेस, लालू और नीतीश को राज्य में सुशासन और विकास लाने के लिए पर्याप्त समय दिया है। लेकिन जमीन पर हालात अभी भी उतने ही निराशाजनक बने हुए हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के राज्यों में बिहार का स्थान 21 वां है। हम इस स्थिति को पूरी तरह बदलने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। हम राज्य का चौमुखी विकास चाहते हैं।


विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार पैकेज पुरानी योजनाओं की ही रिपैकेजिंग है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राज्य में सर्वे कराया, राज्य की आवश्यकतानुसार नीतियों में बदलाव किया, बजट आवंटित किया और इस तरह राज्य के विकास का एक मॉडल तैयार किया। इसके बाद ही सरकार एक लाख पच्चीस हजार करोड़ रुपये के पैकेज के फैसले पर पहुंची है। साथ ही चालीस हजार करोड़ रुपये की राशि बिहार में चलाई जा रही मौजूदा योजनाओं के तहत मिलना है। यह बिहार के तीन साल के सालाना बजट के बराबर है। दूसरी तरफ बीते दस साल में यूपीए सरकार ने क्या‍ किया? यूपीए सरकार के पहले दौर में लालू जी केंद्र में रेल मंत्री थे। यूपीए ने केवल दस हजार करोड़ रुपये सालाना के हिसाब से बिहार को दिए। जबकि हमने एकमुश्त एक लाख पैंसठ हजार करोड़ रुपये की राशि दे दी। बिहार में अब एक ऐसी सरकार की आवश्यकता है जो केंद्र के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके। इस तरह बिहार को विकसित किया जा सकेगा।


क्या‍ आपको नहीं लगता कि बिहार पैकेज पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है? 

प्रधानमंत्री बार बार कहते रहे हैं कि देश के पश्चिमी हिस्से में लगातार विकास हुआ है। जबकि पूर्वी हिस्सा विकास की इस दौड़ में पीछे रह गया है। इसलिए अब सारा फोकस पूर्वी भारत जिसमें बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड आते हैं, पर है। प्रधानमंत्री विकास के मामले में राजनीति नहीं करते। वह पूर्वी भारत के विकास को लेकर पूरी तरह गंभीर हैं ताकि इस क्षेत्र को भी समृद्ध और संपन्न बनाया जा सके। बिहार के पैकेज में किसी तरह की राजनीति नहीं देखी जानी चाहिए। केंद्र सरकार पूर्वी भारत को विकसित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं और बिहार उसका अहम हिस्सा है। नीतीश जी कहते हैं कि बिहार को किसी की मदद की जरूरत नहीं है। जबकि मेरा मानना है कि बिहार पर कोई एहसान नहीं कर रहा है। बिहार विकास के लिए इस पैकेज को पाने का हकदार है।

क्या‍ आपको लगता है कि 'जंगलराज वापसी’ का आपका नारा लोगों पर प्रभाव डाल पाया है?
बिल्कुल, हमारे इस अभियान की स्वीकृति लोगों में दिख रही है। केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही बिहार में भी भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार जदयू-राजद गठबंधन की सरकार में तब्‍दील हो गई। तब से अब तक राज्य की गवर्नेंस में काफी तेज गिरावट आई है। इस सरकार पर जंगलराज की छाया साफ दिखती है। विकास के सभी मानकों में गिरावट आई है।

महागठबंधन को लेकर आप क्या‍ कहना चाहेंगे, क्या‍ यह चुनाव में गंभीर चुनौती पेश कर पाएगा?
अवसरवादिता और अनैतिक गठबंधन का इससे बड़ा उदाहरण कोई दूसरा नहीं हो सकता। नीतीश जी पूरे पंद्रह साल लालू जी के जंगलराज के खिलाफ लड़ते रहे। और सिर्फ मुख्य‍मंत्री की कुर्सी के लिए उन्होंने जनता के किए अपने वादे भुला दिए और लालू जी से हाथ मिला लिया। अब बहुत हैरानी होती है यह सुनकर कि लालू जी का राज जंगलराज नहीं था। लालू जी और नीतीश जी ने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस विरोधी मंच से शुरू किया था। ये दोनों कर्पूरी ठाकुर, लोहिया जी और जयप्रकाश नारायण जी के कांग्रेस विरोधी आंदोलन के साथ राजनीति में आगे बढ़े। लेकिन आज केवल सत्ता पाने के लिए दोनों ने कांग्रेस से ही हाथ मिला लिया है।

भाजपा ने बिहार चुनाव में मुख्य‍मंत्री के तौर पर कोई चेहरा नहीं उतारा है। क्या‍ इसका असर होगा?
भाजपा एक कैडर आधारित पार्टी है। इसलिए इसके पास कार्यकर्ताओं के रूप में बड़ी ताकत है। यह ताकत राज्य को नेतृत्व देने की क्षमता भी रखता है। अभी हमारे सामने केवल एक ही लक्ष्य है और वह है बिहार चुनाव में जीत हासिल करना। हमारे नेता रोजाना करीब दो लाख लोगों से मिल रहे हैं। यह संख्या‍ नरेंद्र भाई की रैलियों में और बढ़ जाती है। लोगों से आमने सामने की यह मुलाकात ही हमारी रणनीति है। इससे हमें काफी लाभ भी मिला है। हम हरियाणा में भी बिना मुख्य‍मंत्री के उम्मी‍दवार के लड़े और जीते। यही हमने महाराष्ट्र में किया, झारखंड में किया और जम्मू‍ कश्मीर में भी। इन सभी राज्यों में हमने विजय हासिल की।

नीतीश कुमार को सोशल इंजीनियरिंग में माहिर नेता माना जाता है। उन्होंने अपनी जाति के चार फीसद वोट के सहारे दस साल राज्य पर शासन किया है?
नीतीश जी अपने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चल कर मुख्य‍मंत्री नहीं बने हैं। हमारी पार्टी का मजबूत काडर और 90 विधायक उनकी सबसे बड़ी ताकत थे। अब उनके पास न तो हमारे काडर का समर्थन है और न ही विधायक। मेरा मानना है कि चुनावी राजनीति केवल गणित का खेल नहीं है जहां एक और एक दो होते हैं। यह एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें दो तत्व मिलकर एक तीसरे तत्व को जन्म देते हैं। लालू जी की एंट्री से सुशासन पीछ चला गया है और जंगलराज अब आगे आ गया है। लालू के साथ आने से नीतीश जी की जातिगत राजनीति के मुख्य‍ आधार दलित, महादलित और अति पिछड़े अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। जबकि हमारे साथ केवल वही लोग हैं जो लोग विकास और न्याय व्यवस्था में भरोसा रखते हैं।

इन चुनावों में आपके और लालूजी के बीच आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। जैसे चारा घोटाला के संदर्भ में लालू जी पर चारा चोर और गुजरात दंगों तथा फर्जी मुठभेड़ों के संदर्भ में आप पर नरभक्षी शब्द‍ का प्रयोग। आपका क्या‍ कहना है?
यह स्पष्ट हो गया है कि लालू जी को अपने सामने हार साफ नजर आ रही है। यही वजह है कि वह बहुत ज्यादा चिंतित, परेशान और भयभीत हैं। इसलिए सार्वजनिक बहस का स्तर भी गिर रहा है। हालांकि मैं उनके द्वारा जनता के बीच कहे जाने वाले शब्दों‍ के चयन को लेकर चिंतित हूं, लेकिन उनके ये आरोप मुझ पर व्यक्तिगत तौर पर असर नहीं डालते। यह एक तथ्य है कि लालू जी चारा घोटाले के दोषी हैं और अभी वह जमानत पर जेल से बाहर हैं। दूसरी तरफ मुझ पर कई तरह के राजनीतिक आरोप लगे हैं, लेकिन इन सभी आरोपों में मैं निर्दोष साबित पाया गया हूं।

टिकट बंटवारे को लेकर कई सवाल उठे हैं। यहां तक कि आपकी पार्टी के सांसद राजकुमार सिंह ने टिकट बेचे जाने तक का आरोप लगाया है?
पार्टी के तौर पर बिहार में भाजपा के पास एक बड़ा और प्रतिबद्ध काडर है। ऐसे में जहां हजारों दावेदार हैं वहां सीटों की संख्या‍ केवल 243 ही है। जाहिर है ऐसे में कुछ कार्यकर्ता पीछे छूट जाएंगे और उनमें से कुछ अपनी निराशा भी अभिव्यक्त‍ करेंगे। टिकट बंटवारे में लग रहे आरोपों का सवाल है, इसमें कोई सत्यतता नहीं है। उक्वमीदवारों के चयन को लेकर हमारी एक तय प्रक्रिया है और इसमें केवल योग्य उम्मी‍दवारों को ही टिकट मिल पाते हैं।

चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में क्या‍ होगा?
मैं त्रिशंकु विधानसभा के बारे में सोच भी नहीं सकता क्यों‍कि मैंने जमीन पर स्थिति समझ रहा हूं। भाजपा के नेतृत्व में राजग बिहार में सरकार बनाने जा रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि भाजपा अकेले 120 सीटों से अधिक जीतेगी।

बीफ पर प्रतिबंध को लेकर आपका क्या‍ विचार है?
पूरे देश में गाय की पूजा की जाती है। हम गाय की हत्या के खिलाफ हैं। हमारी परंपरा में ही गाय को केवल एक पशु नहीं माना गया है बल्कि हमारी संस्कृति में इसका स्थान मां के समकक्ष है। सभी धर्मग्रंथों जिनमें भगवद गीता भी शामिल है, में गाय माता की बहुत सम्मा‍नजनक प्रस्तुति रही है। सभी भाजपा शासित प्रदेशों में गौ हत्या प्रतिबंधित है। अगर हम बिहार में जीतते हैं तो यहां भी गौ ह्त्या पर रोक लगाएंगे। इस मुद्दे पर लालू जी और उनके अन्य वरिष्ठ नेताओं के बयानों से मैं बेहद आहत हूं। हमारे लिए यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि एक संस्कृति का हिस्सा है जो कि देश के गौरव से जुड़ा है।

भाजपा को दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा। बिहार पार्टी के लिए चुनौती है। आप कैसे बिहार को जीतेंगे?
बिहार चुनाव निश्चित रूप से चुनौती है क्यों‍कि यह एक विशाल और राजनीतिक तौर पर जटिल राज्य है। यहां विभिन्न समुदाय हैं और हर सीट का अपना अलग गणित है। इस जटिलता और व्यक्तिगत आकाक्षाओं के बीच हर व्यक्तिगत बिहार का विकास देखना चाहता है। यहां तत्काल चौतरफा बिजली की आपूर्ति, गांव और शहरों में पक्की सडक़ें, स्वच्छ पेयजल, उद्योंगों में निवेश और रोजगार सृजन की आवश्यकता है। मां गंगा की पूरे राज्य में उपस्थिति होने के बावजूद बिहार का किसान आज भी सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है। कानून और व्यवस्था की स्थिति यहां पूरी तरह चौपट हो गई है। भाजपा शासित प्रदेशों के विकास और केंद्र में मोदी सरकार के विकास के एजेंडा को देख बिहार की जनता निश्चित तौर पर भाजपा और उसके सहयोगियों का समर्थन करेगी और उन्हें अवसर देगी।

राज्य में पार्टी के पास कई चेहरे होने के बावजूद भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को बिहार चुनाव में चेहरा बनाया है?
आज प्रधानमंत्री मोदी केवल भाजपा ही नहीं संपूर्ण भारत के शीर्ष नेता हैं। देश के प्रत्येक मतदाता से प्रधानमंत्री का एक बड़ा जुड़ाव है, फिर वह चाहे किसी भी जाति, धर्म, लिंग, उम्र से संबंध रखता हो। उन्हें यह मतदाता देश की प्रगति, विकास और लोगों की इच्छाओं आकांक्षाओं के प्रतीक के तौर पर देखता है। इसलिए उनके नेतृत्व में बिना किसी मुख्य‍मंत्री उम्मी‍दवार के बिहार का चुनाव लडऩा पूर्णत: उचित है। आप सही हैं कि हमारे पास बिहार में अनेक योग्य नेता हैं और यह अनिवार्य नहीं है कि आप चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ ही उतरें। हम लोगों ने अन्य राज्यों में भी नरेंद्र भाई के नेतृत्व में चुनाव लड़ा है और बड़ी जीत भी दर्ज की है।

आरक्षण नीति को लेकर आपका क्या‍ विचार है?
पार्टी वर्तमान आरक्षण नीति के पूरी तरह पक्ष में हैं और इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ या इसमें बदलाव के पक्ष में नहीं है। लालू प्रसाद जैसे विपक्षी नेता बिहार के मतदाता से झूठ बोल रहे हैं और उन्हें गुमराह कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था। लेकिन अब लोग शिकायत कर रहे हैं?
यह सवाल मुझे हैरान करता है। यूपीए के दस साल के अक्षम और भ्रष्ट शासन के बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में विकास को लेकर एक प्रतिबद्ध सरकार बनी है। इस सरकार ने केवल 15 महीनों के भीतर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के संबंध में कई नीतिगत फैसले लिए हैं। विकास की रफ्तार बढ़ रही है, विदेशों से आने वाले निवेश में जबर्दस्त तेजी आई है, कंपनियां निवेश के लिए तैयार हैं। पूरी दुनिया में जहां एक तरफ उथल-पुथल छाई है भारत अपनी स्थिर और सुधारोन्मुख सरकार के चलते मरुस्थल में मरुद्यान के रूप में देखा जा रहा है।

बतौर भाजपा अध्यक्ष आप पार्टी को कहां देखना चाहते हैं?
आज हम दस करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी हैं। हम लोग अब उस प्रक्रिया में हैं जिसके तहत इन नए कार्यकर्ताओं को व्यापक प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि ये कार्यकर्ता पार्टी की नीतियों और विचारधारा से अवगत हो सकें। बिहार के बाद हम लोग अपना ध्यान असम, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु पर केंद्रित करेंगे जहां आने वाले समय में विधानसभा चुनाव होने हैं। मैं चाहता हूं हर राज्य में कमल खिले।

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