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श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच सही नहीं हुई- अमित शाह

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच सही तरीके से होती तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाता। शाह ने कहा कि जिस अमानवीय तरीके से उन्हें कालकोठरी में कैद कर लिया गया जहां रहस्यमय परिस्थितियों में उनका असमय ही निधन हो गया। इसकी जांच सही तरीके से हाेनी चाहिए थी।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच सही नहीं हुई- अमित शाह

शाह ने नेहरू मेमोरियल संस्थान, तीन मूर्ति भवन में 'डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी - एक निःस्वार्थ देशभक्त' के जीवन पर पर आयोजित  प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए देश की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने के लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के अभूतपूर्व योगदान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होने कहा कि आज मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि नेहरू मेमोरियल संस्थान डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के जीवन और उनके बलिदान पर एक प्रदर्शनी आयोजित कर रही है।

भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इतिहास ने जिस महापुरुष के साथ अन्याय किया है, जिसे सत्ता की रत्ती भर भी चाह नहीं थी, जो एक प्रतिष्ठित लेखक, वकील, शिक्षाविद और विचारक होने के साथ-साथ एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने अपने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में भी देरी नहीं की, मैं ऐसे निर्मोही राजनेता और सच्चे व्यक्तित्त्व, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद करने के लिए इस समारोह में शामिल हुआ हूँ। देश की एकता एवं अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अतुलनीय योगदान की चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि जो व्यक्ति केवल और केवल अपने सिद्धांतों एवं अपने देश के बारे में सोचता हो, उन्हें इस बात की बिलकुल परवाह नहीं होती कि इतिहास उसके बारे में क्या लिखेगा। इसलिए इतिहासकारों ने श्यामा प्रसाद जी के बारे में सही तथ्य सामने नहीं रखा।  

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के नेतृत्त्व में जमू-कश्मीर आंदोलन की चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के ऊपर हालांकि नेहरू जी की कई नीतियाँ भारत के लिए समस्या का कारण बनी लेकिन एक नीति काफी गंभीर थी और वह यह कि यदि कोई भी जम्मू-कश्मीर जाना चाहता है तो उसे भारत के रक्षा मंत्रालय से एक परमिट लेना पडेगा। उन्होंने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने कहा, ऐसा नहीं चलेगा, हमें अपने देश में कहीं भी बेरोकटोक जाने की आजादी होनी चाहिए और इसके लिए, जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए उन्होंने आंदोलन शुरू किया और अपने इसी संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े, कश्मीर पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अमानवीय तरीके से उन्हें कालकोठरी में कैद कर लिया गया जहां रहस्यमय परिस्थितियों में उनका असमय ही निधन हो गया। शाह ने सवाल ‌उठाया कि यदि परमिट उलंघन के आरोप में पकड़ा गया तो फिर उन्हें कश्मीर सीमा पर ही पकड़ना चाहिए था। यदि पकड़ा भी गया तो उनकी कस्टडी भारत की पुलिस को न देकर जम्मू-कश्मीर पुलिस को क्यो दिया गया। उन्होने कहा कि उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत की सही जांच नहीं हुई। 

 

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