Advertisement

बड़हरा का चित्तौड़गढ़ कैसे बचेगा

बिहार में चुनावों की तैयारी में जुटे विभिन्न दलों और उम्मीदवारों ने अपने-अपने एजेंडे को जनता के सामने रखने की कवायद शुरू की। भोजपुर के बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में मुद्दों, जाति और विकास पर हो रही बातचीत
बड़हरा का चित्तौड़गढ़ कैसे बचेगा

 

भोजपुर के बड़हरा विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत कोइलवर स्टेशन के यात्री पड़ाव में चुनावी बातचीत के दौरान एक बुजुर्ग ने कहा, “बेकार ही हमसे खफा है, हम तो सजा भी पाकीजगी से देते हैं, हाथ तक नहीं उठाते नजरों से गिरा देते हैं।”  बात तथाकथित बाहुबली सुरेन्द्र सिंह की पत्नी, जनता दल यूनाइटेड की भूतपूर्व विधायिका और वर्तमान में भाजपा की उम्मीदवार अक्टूबर 2015 के शपथ पत्र के अनुसार 52 वर्षीय आशा देवी के बारे में हो रही थी। अपने शपथ पत्र में इनकी शैक्षिक योग्यता के बारे में सिर्फ इतना लिखा है कि ये ‘शिक्षित’ हैं।

उन्होंने 2010 के अपने शपथ पत्र में बताया था कि अपनी पढ़ाई कस्तूरबा हाई स्कूल, बिहिया, भोजपुर से की है। उन्होंने यह पढ़ाई किस वर्ष पूरी की, यह नहीं बताया, मगर शपथ पत्र में खुद को नॉन- मैट्रिक लिखा है। उन्होंने 2010 के अपने शपथ पत्र में अपनी उम्र 40 वर्ष बताई थी।

सुबह-सुबह कोइलवर- बबुरा रोड पर टहलते हुए दौलतपुर पंचायत के पूर्व मुखिया और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रखंड अध्यक्ष, प्रभुनाथ सिंह ने चुनावी परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मतदाता तो अपना मन बना चुका है। एक तबका ‘चित्तौड़गढ़’ बचाने की फिक्र में है तो दूसरा तबका महागठबंधन के साथ खड़ा है। ‘चित्तौड़गढ़’ वालों को यह तय करना है कि वे पूर्व मंत्री व वर्तमान विधायक और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राघवेन्द्र प्रताप सिंह  (62 वर्ष) को चुनें या भाजपा के उम्मीदवार को। वैसे बक्सर-पटना पैसेंजर ट्रेन में यात्रा के दौरान कुछ लोगों का कहना था कि राजद के विधायक के रूप में राघवेन्द्र प्रताप सिंह का नाम और काम लोग भूले नहीं है, मगर लालू प्रसाद यादव की पार्टी में टूट के समय नीतीश कुमार के साथ चले जाने के कारण राजद ने उन्हें टिकट नहीं दिया। राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने मैट्रिक तक की शिक्षा टी. ए. ज. उच्च विद्यालय, धमार से 1968 में पूरी की। उनके स्थान पर सरोज यादव को टिकट दिया गया है। महागठबंधन को उम्मीद है कि उन्हें नरेन्द्र मोदी सरकार के काम से जो असंतुष्ट है उनका और यदुवंशियों के साथ-साथ नीतीश के समर्थक अति पिछड़ों का व्यापक मत मिलेगा। 33 वर्षीय सरोज यादव के शपथ पत्र के अनुसार उन्होंने गीता संस्कृत विद्यालय, नवादा, आरा से मध्यमा (मैट्रिक) की परीक्षा को 2006 में उत्तीर्ण की।   

भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता से जब पूछा गया कि क्या वह आशा देवी को नामांकन करवाने के लिए जा रहे हैं, तो उन्होंने मन मसोस कर कहा कि उनके जाने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि उन्हें पार्टी या उम्मीदवार द्वारा बुलाया ही नहीं गया है। बावजूद इसके उन्होंने कहा कि जदयू विधायक के रूप में आशा देवी के व्यवहार से उन्हें कोई परेशानी नहीं थी, मगर पार्टियों में उम्मीदवार चयन की कोई तो प्रक्रिया और मापदंड तय होनी चाहिए। आरा सांसद राज कुमार सिंह के बयान सबके जेहन में हैं।                  

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) के तरफ से ललन यादव हैं जो कई दशकों से पार्टी के साथ प्रखंड स्तर पर काम करते रहे हैं। उनका दावा है कि उनकी पार्टी विधानसभा क्षेत्र के 37-38 पंचायतों और 247 बूथों पर मजबूती से मौजूद है और गरीब जनता के साथ साल-दर-साल काम करती रही है। उनकी राजनीति चुनाव केंद्रित नहीं जनहित केंद्रित रही है। जीतने और हारने से उनकी पार्टी और जनता के बीच के संबंध प्रभावित नहीं होते हैं। पार्टी हरेक प्रखंड में कॉलेज, हर जिले में तकनीकी और बीएड कॉलेज, महादलित टोलों में सामुदायिक भवन, इन टोलो में रोड और पर्चाधारी लोगों को जमीन दखल कराने, बटाईदार किसानों के लिए पहचान पत्र और इंदिरा आवास योजना, पोशाक-साइकिल योजना में भ्रष्टाचार के मुद्ददे, शिक्षा के स्तर में गिरावट की मुखालफत की, बंद पड़े स्वास्थ्य उपकेंद्रों को खुलवाने, महिला डाक्टरों की बहाली, पुस्तकालय और खेल के मैदान, शराब बिक्री पर रोक लगाने, पानी के अभाव में मकई के नष्ट फसल के लिए मुआवजा, घर-घर में शौचालय और सामुदायिक शौचालय, बीपीएल परिवारों के लिए 5 किलो की जगह 10 किलो अनाज, क्षेत्र में सिचाई की व्यवस्था, शिवपुर फरहदा में जल जमाव की समस्या से निदान आदि मसलो के लिए संघर्ष कर रही है। पार्टी ने क्षेत्र की जनता और पर्यावरण बचाओ, जीवन बचाओ संघर्ष समिति और खेत बचाओ जीवन बचाओ संघर्ष समिति के साथ मिलकर 18 जिलों के जहरीले औद्योगिक कचरे और 150 अस्पतालों के कचरे को जलाने और दफनाने वाले हैदराबाद की कंपनी के कारखाने को सोन नदी के तट में स्थापित होने रोक कर बड़हरा क्षेत्र के जन स्वास्थ्य और पर्यावरण को बचाया है। पार्टी ने 50 से ज्यादा देशो में प्रतिबंधित कैंसर कारक एस्बेस्टस के कारखाने के खिलाफ गिद्धा में चल रहे संघर्ष का साथ दिया है जिससे मजदूरों और स्थानीय लोगो को जानलेवा रोगों से बचाया जा सके।

गौरतलब है कि क्षेत्र में स्थित टीबी अस्पताल और मानसिक रोग अस्पताल की दयनीय स्थिति है। सोन नदी में हो रहे अंधाधुंध बालू खनन से इलाके में भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और कोइलवर-बबुरा सड़क की स्थिति चुनाव के घोषणा के ठीक पहले तक बहुत खराब थी।        

नागरिकों को अलग-अलग पार्टियों के उम्मीदवारों के बारे में पता चले, इसके लिए 4 अक्टूबर की शाम को बड़हरा थाना के सामने पडरिया फुटबॉल मैदान में युवा जिज्ञासु मंच ने एक आमसभा का आयोजन किया जिसमे समाजवादी पार्टी, भाजपा और हिन्द विकास दल के तीन उम्मीदवार शामिल हुए। आयोजकों ने दावा किया कि अन्य उम्मीदवारों को भी बुलाया गया था मगर वे नहीं आए। हालांकि, भाकपा-माले के प्रखंड सचिव नंदजी और उनके उम्मीदवार लालन यादव से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह सरासर गलत है। उन्हें इस आम सभा की कोई सूचना नहीं दी गई थी।

इस सभा में विधायक राघवेन्द्र प्रताप सिंह से उनके और उनके पिता के कार्यकाल में हुए बड़हरा के शिक्षा और विकास की रिपोर्ट मांगी गई। गौरतलब है कि इनके पिता अम्बिका शरण सिंह 1967-1969 तक कांग्रेस पार्टी से विधायक रहे, 1977-1980 तक जनता पार्टी से विधायक रहे और उसके बाद राघवेन्द्र प्रताप सिंह  ने 1985 से 2005 तक इस क्षेत्र की जनता दल और राजद की तरफ से नुमाइंदगी की। साल 2005 में वह जदयू की आशा देवी से हार गए। मगर 2010 में वह आशा देवी को हरा कर राजद से विधायक बन गए। उनसे 30-35 सालों की रिपोर्ट मांगी गई,  मगर वह कुछ ख़ास गिनवा नहीं पाए क्योंकि जनता ने सवालों की झड़ी-सी लगा दी।      

आमसभा के दौरान समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने जब आशा देवी पर उनके विधायक काल में आरा में बने मॉल का मुद्दा उठाया तो उनके और भाजपा के उम्मीदवार के बीच कहा सुनी हो गई। इससे नाराज राघवेन्द्र प्रताप सिंह सभा से उठ कर चले गए। इस विवादित मॉल के मामले में लोगों का कहना है कि इस कालेज की ज़मीन पर पहले एक विधायक ने कब्ज़ा किया फिर दूसरे ने अपने कार्य काल में उसे हथिया लिया। इसकी सच्चाई पड़ताल का विषय है।  

जब भाजपा के उम्मीदवार से बार-बार यह पूछा गया कि जीतने के बाद क्षेत्र के लिए वह कौन से पांच मुख्य काम करेंगी, उन्होंने जवाब न देकर नरेंद्र मोदी के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास’ को दोहरा दिया और कहा कि इस बार जितने के पांच साल बाद आप रिपोर्ट मांगिएगा।

2009 से क्षेत्र में सक्रिय हुए मुख्य धारा के दलों से निराश हिन्दुस्तान विकास दल के ललाट पर लाल टिका लगाये डॉ अनिल सिंह ने मूलभूत जरूरतों के अभाव में क्षेत्रवासियों को आदिवासी सरीखा जिंदगी व्यतीत करने को मजबूर बताया। जनता की आलोचना करते हुए उन्होंने टिपप्णी कर दी कि अगर वे अनुसाशित नहीं होंगे तो जन प्रतिनिधियो को उनकी नुमायन्दगी करने में भी शर्म आएगी। इस तरह के प्रयास उम्मीदवारों की सोच को कुछ हद तक तो उजागर कर रहे हैं लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी है। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad