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अब क्या होगा कांग्रेस का

दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने से राज्य में कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट पैदा गया है। लोकसभा चुनाव के बाद लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐसा हस्र होगा इस बात का अहसास कांग्रेस नेताओँ को भी नहीं था।
अब क्या होगा कांग्रेस का

पंद्रह साल तक लगातार दिल्ली में सत्ता चलाने वाली कांग्रेस शून्य पर पहुंच जाएगी इससे कांग्रेसी नेता अचंभित तो हैं लेकिन निराश नहीं हैं। कई नेताओं ने आउटलुक से बातचीत में स्वीकार किया कि हार जीत तो होती रहती है लेकिन ऐसी हार होगी इसका अंदाजा नहीं था। कई कांग्रेसी नेताओं को इस बात की खुशी है कि चलों कांग्रेस का तो खाता नहीं खुला लेकिन भाजपा का भी घमंड चूर हो गया।

जिस तरह से भाजपा अपना जनाधार बढ़ा रही थी उस पर विराम लग गया। लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त हार के बाद से कांग्रेस राज्यों में भी लगातार कमजोर होती जा रही है। पहले महाराष्ट्र और हरियाणा में सत्ता छिनी उसके बाद झारखंड और जम्मू-कश्मीर में निराशाजनक प्रदर्शन रहा। दिल्ली में तो लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को भी पार्टी नहीं बचा पाई। एक के बाद एक निराशाजनक प्रदर्शन से कांग्रेस के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कार्यकर्ता अब प्रियंका गांधी को आगे लाने की मांग करने लगे हैं। इसके लिए तो कांग्रेस मुख्यालय से लेकर कई जगहों पर प्रदर्शन भी हो रहा है कि ‘प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ’। मतलब साफ है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लगता है कि पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है। लेकिन इसके उलट पार्टी नेताओं का मानना है कि अभी देश की जनता झूठे वादों और सपनों के आधार पर राजनीति करने वालों को महत्व दे रही है। जैसे ही जनता का भ्रम टूटेगा वैसे ही जनता फिर कांग्रेस की ओर लौटेगी। लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस के बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेता पंकज शर्मा कहते हैं, ‘जनता झूठे वादे और विकास के सपनों के बीच फंस गई। लोगों को ऐसा लगने लगा कि जो विकास की बात कर रहे हैं, जो भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने की बात कर रहे हैं उनको मौका देकर देखा जाए। इसलिए जनता ने लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के नौ महीनों के कार्यकाल को जनता ने देख लिया और अब आम आदमी पार्टी में विकल्प नजर आया जो अरविन्द केजरीवाल को भी मौका दे दिया।’

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात में तो कांग्रेस का वनवास ही खत्म नहीं हो रहा है। इन राज्यों में जबसे सत्ता छिनी है उसके बाद पार्टी अपना खोया जनाधार पाने की जद्दोजहद कर रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं, ‘कार्यकर्ताओं का भरोसा टूट रहा है। इसलिए वह दूसरे दलों में अपना विकल्प देख रहा है।’ ऐसे में कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी चिंता अपने कार्यकर्ताओं को रोकने का है। इसके लिए पार्टी रणनीति बना रही है। नए लोगों को जोड़ने की मुहिम चला रही है। लेकिन हकीकत यही है कि अभी वह उत्साह नजर नहीं आ रहा है जो कि पहले देखने में था। जिन राज्यों में पार्टी हाशिए पर चली गई वहां पिछड़ती ही जा रही हैं।

ऐसे में पार्टी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कांग्रेस को किस तरह से मजबूत किया जाए। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता संगठन के कामकाज पर आरोप लगाकार पार्टी छोड़ चुके हैं और कईयों ने विरोध का रुख अख्तियार कर लिया है। कांग्रेस कैसे खोया जनाधार पाएगी इस बारे में पंकज शर्मा कहते हैं,‘ कांग्रेस में दो तरह के लोग हैं एक वो जिनमें कांग्रेस है और दूसरे वो जो कांग्रेस में हैं। अगर पार्टी जिनमें कांग्रेस है उन्हें मजबूत करती है तो कांग्रेस अपने आप मजबूत हो जाएगी।’ 

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