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एक थी रानी, स्मृति ईरानी

पार्टी और प्रधानमंत्री के आंखों की नूर रहीं केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री का आभामंडल खत्म होता दिख रहा है।
एक थी रानी, स्मृति ईरानी

पिछले वर्ष 26 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के भव्य शपथ ग्रहण समारोह भाजपा में सबसे चमकता चेहरा स्मृति ईरानी का था। महज 38 वर्ष की उम्र में वह कैबिनेट मंत्री बन चुकी थीं और उन्हें पार्टी के नए महिला चेहरे के रूप में भी सामने लाया जा रहा था। अपने विशिष्ट अंदाज वाले सिंदूर और चमकती आंखों के साथ यह अभिनेत्री सह राजनेता लोगों की बधाइयां इस अंदाज में कबूल कर रही थीं मानों यह उनका प्राप्य हो। टीवी की बहसों में टिप्पणीकार पूरी वाकपटुता से यह साबित कर रहे थे कि कैसे यह तीक्ष्णबुद्धि वाली युवा महिला, जिसने अमेठी में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ एक अप्रिय मुकाबला किया, भाजपा का भविष्य है। यह भी कहा गया कि वह भारतीय नारीत्व की प्रतीक हैं। वह मुस्कुराते हुए कैमरों के सामने लोगों की बधाइयां स्वीकार कर रही थीं।

मगर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में दक्रतर में एक वर्ष से भी कम समय में तुलसी, जो भूमिका ईरानी ने देश के सबसे प्रसिद्ध सास-बहू धारावाहिक में लंबे समय तक निभाई, की पटकथा गलत दिशा में जाती दिख रही है। ‘रानी मधुमक्खी’ से बदलकर अब उनपर 'एक थी रानी’ बनने का खतरा मंडराने लगा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पहले ही उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर चुके हैं और अब भाजपा के अंदर भी ये चर्चाएं चलने लगी हैं कि उनका कद छोटा किया जा सकता है। जिन संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है वे इस प्रकार हैं: उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाकर किसी छोटे मंत्रालय में भेजा जा सकता है, कि उन्हें कैबिनेट से ही हटाया जा सकता है और पार्टी के काम में लगाया जा सकता है, कि यदि वह मानव संसाधन विभाग में बनी भी रह गईं (स्वाभाविक रूप से वह खुद को हटाए जाने के खिलाफ पार्टी और संघ परिवार में लॉबिंग कर रही हैं) तब भी उनके पर कतरे जा सकते हैं और उनके विभाग में ज्यादा ताकतवर सलाहकार या राज्यमंत्री को तैनात किया जा सकता है।

स्मृति ईरानी की पदावनति एक महत्वपूर्ण घटना होगी क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए दौरान वह मोदी की सबसे प्रत्यक्ष प्रवक्ता थीं। वह 2011 में गुजरात से ही राज्यसभा में चुनी गईं जहां तब मोदी मुख्यमंत्री थे। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में वह अमेठी में स्मृति के लिए प्रचार करने गए जहां उन्होंने लोगों के सामने कहा, मैंने अपनी बहन को आपके सामने भेजा है। भले ही 111 सदस्यीय पार्टी कार्यकारिणी से उन्हें हटा दिया गया हो मगर बेंगलूरु में, उन्हें भी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाया जा सकता था जहां कार्यकारिणी की बैठक में 300 लोग जुटे थे मगर नहीं बुलाया गया। जाहिर है ऐसा बिना मोदी की मंजूरी के नहीं हो सकता था।

भाजपा के सूत्रों का कहना है कि मूल समस्या यह है कि वह खुद को प्रधानमंत्री मोदी की सबसे करीबी और कृपापात्र साबित करने के प्रयास में हद से आगे बढ़ गईं। साथ ही उन्होंने पार्टी, अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों और नौकरशाहों के बीच भी खुद को ऊंचा साबित करने की कोशिश की। अशिष्टता, घमंड और गुस्से की शिकायतें शाह तक पहुंचीं जो कि खुद पूरी तरह मोदी के आदमी हैं।

मोदी से निकटता पर इतराना और इसके कारण दूसरों से की गई अभद्रता ही उनकी गलती रही। भाजपा खेमे में कई कहानियां सुनाई जा रही हैं जिनसे स्मृति ईरानी का अनाकर्षक और अहंकारी चेहरा सामने आता है। पार्टी में बेहद अंदर तक पहुंच रखने वाले एक सूत्र के अनुसार एक कहानी यह है कि स्मृति ईरानी पार्टी के वरिष्ठ और बेहद विनम्र नेता केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अभिवादन के लिए भी अपनी कुर्सी से उठकर नहीं खड़ी हुईं। राजनाथ आए तो स्मृति अपनी कुर्सी पर बैठी रहीं।

एक कहानी यह बताती है कि कैसे भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में पार्टी की महिला मोर्चा की एक बैठक में हिस्सा लेने आईं एक महिला नेता के साथ उनका झगड़ा हुआ। तब स्मृति महिला मोर्चा की प्रमुख थीं। पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता याद करते हैं कि उन्होंने कैसे महिलाओं के मुद्दे पर दो मंत्रालयों को पत्र भेजा था। गृह मंत्रालय से तत्काल इसका जवाब मिला जबकि स्मृति के मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं जताई। मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी इस बात की शिकायत करते हैं कि स्मृति महत्वपूर्ण नियुक्तियों के मुद्दे पर भी उनकी अनुरोधों पर कोई ध्यान नहीं देती हैं। भाजपा के एक नेता कहते हैं, 'यदि उन्हें लगता है कि कोई शख्स उनकी लंबी अवधि की योजनाओं में फिट नहीं बैठेगा तो वह उससे मिलने का समय ही नहीं देती हैं। इसी प्रकार अगर उन्होंने किसी के बारे में धारणा बना ली कि वह उनके खिलाफ है तो वह संबंधित शख्स का अभिवादन करना बंद कर देंगीं। हालांकि हाल के दिनों तक प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी वाली पार्टी की बैठकों या जनसभाओं में वह खुद को रानी मधुमक्खी की तरह उस कार्यक्रम के केंद्र में दिखाने की कोई कोशिश बाकी नहीं छोड़ती थीं। यही वजह है कि अमितभाई (शाह) ने जब उन्हें कार्यकारिणी से बाहर फेंका तो लोगों को खुशी हुई।

बाहर फेंका या बाहर रखा, दोनों ही स्थितियों में स्मृति की छवि को धक्का लगा। और अब यह सबको पता है कि जब बेंगलूरु में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी भूमि विधेयक पर अड़चनों तथा अन्य गंभीर विषयों पर विचार कर रही थी, ईरानी गोवा में कपड़े खरीद रही थीं। इस समय तक तो सब ठीक था मगर इसके बाद अचानक देश (कम से कम वे लोग जो टीवी देख रहे थे) को पता चला कि वह गोवा में खरीददारी कर रही हैं और इसी दौरान उन्होंने फैब इंडिया शोरूम के ट्रायल रूप के बाहर लगा कैमरा देखा और आरोप लगाया कि कैमरा ट्रायल रूप के अंदर के दृश्य पर केंद्रित है। दूसरी ओर फैब इंडिया प्रबंधन का कहना है कैमरा ट्रायल रूप के दरवाजे पर केंद्रित है और उसे वहां इसलिए लगाया गया है कि कोई कपड़े चोरी न कर सके। मामला अब अदालत में है इसलिए अंतिम रूप से कुछ कहना संभव नहीं है।

मगर इस मुद्दे पर भाजपा के अंदर से बहुत कुछ कहा जा रहा है। सांसद मीनाक्षी लेखी ने ट्वीट किया, 'क्या मैं भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के खिलाफ किसी की बेवफाई महसूस कर रही हूं। कार्यकारिणी की खबरें चर्चा में न आ पाएं, इसके लिए एक उन्मादी खबर को प्रमुखता दिलाने का प्रयास किया गया। ताकझांक और गुस्से से भरी हुई यह दूसरी खबर निश्चित रूप से दमदार थी।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य ने आउटलुक को बताया, 'कार्यकारिणी की बैठक में कई सदस्य इस बात से अचंभित थे कि स्मृति ईरानी ने अपनी बदमिजाजी दर्शायी थी या फैब इंडिया पर अपना गुस्सा इसलिए उतारा कि वह अमित शाह को गुस्सा नहीं दिखा सकती थीं या उनपर फाइलें नहीं फेंक सकती थीं। स्मृति ईरानी द्वारा खुद को 'झांसी की रानी समझने और अपनी तलवार से चार सिर काटने को उद्धत जैसी टिप्पणियां भी सामने आईं। इस मजाक का पंच लाइन यह था कि यह रानी सिर्फ अपना सिर ही घायल कर सकती है।

एक वरिष्ठ भाजपा नेता अपनी बात साफ-साफ कहते हैं, 'वह करिश्माई, तीक्ष्ण बुद्धि वाली और मेहनती हैं। मगर शायद उन्हें झगड़े से प्यार है जिसकी दरअसल शांतिकाल में कोई जरूरत नहीं होती। ऐसा प्रतीत होता है कि वह विवादों को पसंद करती हैं ञ्चयोंकि विवाद उन्हें खबरों में बनाए रखते हैं मगर उनका जनसंपर्क बेहद खराब है। जो लोग उनसे मिलने जाते हैं उनपर अपना प्रभाव छोडऩे की बजाय वह उन्हें निराश करती हैं। वह प्रतिभाशाली हैं इसलिए हम लोग उक्वमीद कर रहे हैं कि वह अपने तरीके बदलेंगी।

मंत्री बनने के बाद उनकी शिक्षा भी लगातार विवादों में रही है। चुनावी हलफनामे में उन्होंने खुद को कला स्नातक करार दिया मगर बाद में पता चला कि वह हाई स्कूल तक ही पढ़ी हैं। उनकी स्नातक डिग्री का विवाद अबतक नहीं सुलझा है। इसी प्रकार दिल्ली में उन्होंने खुद को तब मजाक का विषय बना लिया जब यह दावा किया कि उनके प्रास प्रतिष्ठित येल विश्वविद्यालय की डिग्री है। बाद में पता चला कि वह सांसदों के एक समूह के साथ येल विश्वविद्यालय के छह दिवसीय कै्रश कोर्स में शामिल हुई थीं। इस घटनाक्रम से उनका और अधिक मजाक बना।

आईआईटी के एक समूह ने, जो मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में उनसे मिला, यह बयां किया, 'मंत्री ने सात बार यह घोषणा की कि वह अनपढ़ नहीं हैं। समूह के एक सदस्य के अनुसार इस बैठक में वह कुछ हद तक आक्रामक थीं क्योंकि शायद वह समझती थीं कि आक्रमण सबसे बेहतर बचाव है। अगर स्मृति ईरानी को मोटी खाल के नीचे पतली त्वचा को छिपाना हो तो कहा जा सकता है कि उन्होंने शानदार तरीके से इसे अंजाम दिया है। उन्होंने अपना व्यक्तित्व ऐसा जाहिर किया है जो सबसे न्यारा और अलग है।

भाजपा के एक नेता कहते हैं, 'राजनीति को लेकर स्मृति के रवैये की समस्या यह है कि उन्हें हमेशा एक गॉड फादर की जरूरत महसूस होती है और यदि ऐसा कोई मौजूद न हो तो वह किसी कद्दावर पुरुष छवि की करीबी होने का भ्रम पैदा करती हैं। वर्ष 2003 में जब स्मृति ने भाजपा की सदस्यता ली थी तब राजनीति में उनके पहले संरक्षक दिवंगत प्रमोद महाजन थे। पार्टी में शामिल होने के एक वर्ष के अंदर सबको यह पता चल गया कि वह दिल्ली या मुंबई में हाई प्रोफाइल चुनाव लडऩा चाहती हैं। तब अटल बिहारी वाजपेयी के पीएमओ की एक महत्वपूर्ण हस्ती महाजन ने यह सुनिश्चित किया कि स्मृति को चांदनी चौक सीट से कपिल सिद्ब्रबल के खिलाफ पार्टी टिकट मिले। विजय गोयल इससे नाराज थे मगर वह महाजन के खिलाफ नहीं जा सकते थे। स्मृति हार गईं मगर उन्होंने प्याले में तूफान तो उठा ही दिया था। यह वही समय था जब उन्होंने मोदी के खिलाफ भी जमकर बयान दिए (वाजपेयी और महाजन दोनों तब गुजरात के मुख्यमंत्री के खिलाफ थे)। वर्ष 2006 में महाजन की हत्या के बाद ही स्मृति ने पूरी सावधानी से खुद को तब के भाजपा के सबसे कद्दावर मुख्यमंत्री की गुड बुक में शामिल करवाने का प्रयास किया।

भाजपा सूत्रों के अनुसार गुजरात की वर्तमान मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ही वह शख्स थीं जिन्होंने मोदी का रुख स्मृति के प्रति नरम करने में मुख्य भूमिका निभाई। एक भाजपा नेता परिहास से कहते हैं, भाजपा में स्मृति सिर्फ एक ही महिला नेता के करीब थीं और वह थीं आनंदीबेन और उनकी बेटी अनार पटेल। राजनीति में महिलाएं यदि किसी नेता की बेटी-बहू न हों तो उनके वस्तु के रूप में देखे जाने का खतरा रहता है। स्मृति ईरानी अपने तरीके से पार्टी में शीर्ष स्तर पर पहुंची हैं। एक पूर्व अभिनेत्री होने के कारण उन्हें अपरिहार्य रूप से ऐसे लोगों द्वारा लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा हो सकता है जो पार्टी में किसी ताकतवर महिला का उभार रोकना चाहते थे। और इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं भी अपने किसी विरोधी के उभार को रोकने के लिए किसी पुरुष जितनी ही बुरी हो सकती हैं। यह मानव स्वभाव है और भाजपा हमेशा से बड़ी प्रतिद्वंद्विताओं और टकराती महत्वाकांक्षाओं वाली पार्टी रही है।

भारत की फेवरिट बहू (उन्होंने एकता कपूर के धारावाहिक में दिए गए अपने पहनावे को कभी नहीं त्यागा) के रूप में राजनीति में आने के बाद से ही ईरानी भाजपा की सितारा रही हैं। हेमा मालिनी जैसे एक और खूबसूरत चेहरे के मुकाबले स्मृति पार्टी में ज्यादा स्मार्ट और तेज-तर्रार रही हैं। एक राजनीतिज्ञ के रूप में स्मृति बेशक अलग क्षमता की नेता हैं जो बहस का रुख बदल सकती हैं, राजनीति के मैदान में चुनौती स्वीकार कर सकती हैं और पत्रकारों को उचित जवाब दे सकती हैं। उनके पास डिग्री भले न हो मगर यह मानना मुश्किल है कि वह स्मार्ट या व्यावहारिक समझबूझ वाली नहीं हैं। उनके दुश्मन भी मानते हैं कि पार्टी की प्रचारक और प्रवक्ता के रूप में उन्होंने अपनी क्षमता साबित की है।

समस्या उनके राजनीतिक जुझारूपन या संघर्ष की क्षमता में नहीं है (अमेठी में राहुल के खिलाफ उन्होंने क्या शानदार प्रदर्शन किया था) बल्कि असली समस्या उनके मिजाज में है। खासकर मिजाज की तुनक में । वह किसी टीवी धारावाहिक के चरित्र की तरह ही जल्दी-जल्दी गुस्से में आ जाती हैं जबकि किसी राजनीतिक दल में एक-दूसरे की पीठ में छूरा मारने को तैयार नेता भी सार्वजनिक रूप से विनम्रता दिखाते रहते हैं। यदि आप ऐसे करिश्माई नेता नहीं हैं जिनके चारों ओर पूरी पार्टी टिकी होती है, तो आप ड्रामा क्वीन या किंग नहीं बन सकते। स्मृति ईरानी का स्वभाव बेशक पार्टी में उनके कद से मेल नहीं खाता। उन्होंने इतने लोगों से बिगाड़ कर लिया है कि अब वह भाजपा में नायिका के बदले खलनायिका के रूप में चित्रित की जा रही हैं।

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