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कांग्रेस की डूबती नैया संभालेंगे राहुल?

राहुल गांधी पर लगातार उनकी नेतृत्व क्षमताओं को लेकर आरोप लगता रहा है। विपक्ष भी उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता रहा है। लेकिन सारे सवालों को किनारे कर कांग्रेस अब उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाने की सोच रही है।
कांग्रेस की डूबती नैया संभालेंगे राहुल?

लोकसभा चुनावों और उसके बाद कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी संकट से जूझ रही है। ऐसे में पिटे हुए मोहरे से पार्टी में कैसे जान आयेगी यह सवाल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने ऐसे समय में राहुल को बड़ी जिम्मेदारी देने का समर्थन किया है जब राहुल गांधी रहस्यमयी तरीके से छुट्टी पर चले गये हैं।

नौ बार से लोकसभा के सदस्य कमलनाथ ने कहा कि राहुल गांधी को पार्टी की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी जानी चाहिए। एक पार्टी में दो नीति निर्माता इकाइयां नहीं हो सकतीं।

उन्होंने आज साक्षात्कारों में कहा कि राहुल को अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए क्योंकि मौजूदा हालात में लगता है कि राहुल या सोनिया में से कोई काम नहीं कर रहा। सोनिया गांधी सोचती हैं कि राहुल गांधी कुछ कर रहे हैं और राहुल सोचते हैं कि सोनिया कुछ कर रहीं हैं। ऐसी स्थिति में कमान राहुल के हाथ में होनी चाहिए।

अप्रैल में कांग्रेस का सत्र बेंगलूरू या शिमला में हो सकता है जिसमें पार्टी को संकट से उबारने के तरीकों पर विचार होगा।

कांग्रेस में सोनिया गांधी सबसे अधिक समय तक पार्टी अध्यक्ष रही हैं। उन्होंने 1998 में सीताराम केसरी से यह जिम्मेदारी ली थी और तब से अभी तक पार्टी की कमान संभाल रही हैं।

उनके नेतृत्व में कांग्रेस 1999 के आम चुनावों में भाजपा नीत राजग के आगे हार गयी थी लेकिन 2004 के चुनाव में वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन बनाकर सत्ता में आई।

राहुल गांधी को जनवरी, 2013 में जयपुर में पार्टी के चिंतन शिविर में महासचिव से उपाध्यक्ष बनाया गया था। पिछले साल लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाकर उन्हें एक तरह से पार्टी का चेहरा बनाकर पेश किया गया था।

राहुल के अचानक छुट्टी पर चले जाने को पार्टी में उनके कुछ फैसलों के अमल में नहीं लाये जाने के चलते नाराजगी से जोड़कर भी देखा जा रहा है। उनके करीबी सूत्र कहते हैं कि यह धारणा बिल्कुल गलत है कि राहुल पार्टी में जो चाहते हैं, वह कराते हैं।

राहुल गांधी और पार्टी के पुराने नेताओं के कामकाज के तरीके में अंतर भी कई बार सामने आया है।

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