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क्‍यों संभव नहीं है भूकंप की भविष्‍यवाणी

भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन आंतरिक प्रक्रियाओं से पृथ्‍वी का निर्माण हुआ है, वहीं भूकंप का कारण हैं। भूकंप सदियों से आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे। इसकी भविष्‍यवाणी संभव नहीं है। हमें भूकंप के साथ जीना सीखना होगा।
क्‍यों संभव नहीं है भूकंप की भविष्‍यवाणी

नेपाल में आए विनाशाकारी भूकंप के बाद अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है। कोई चांद के उल्‍टा लटकने की बात कर रहा है तो कई लोग प्रकृति के साथ मानव की छेड़छाड़ को भूकंप से जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन भू-वैज्ञानिकों की मानें तो भूकंप की भविष्‍यवाणी करना न सिर्फ असंभव है बल्कि इसे रोक पाना भी इंसान के बूते के बाहर है। पर्यावरण से छेड़छाड का भी भूकंप आने से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, आंधाधुंध विकास से भूकंप के बाद विनाश का खतरा जरूर बढ़ जाता है।  

 

गृह मंत्रालय ने स्‍पष्‍ट कर दिया है कि अमेरिकी स्‍पेस एजेंसी नासा ने भारत के लिए भूकंप की कोई भविष्‍यवाणी से नहीं की है। वरिष्‍ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार बियानी ने आउटलुक को बताया कि भूकंप के कारणों पर गौर की जाए तो समझ आएगा कि भूकंप की भविष्‍यवाणी का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हो सकता। भूकंप पृथ्‍वी की आंतरिक सतह (टेक्‍टोनिक प्‍लेट्स) के बीच होने वाले टकराव और उससे पैदा तरंगों का नतीजा हैं। इस तरह भूकंप पृथ्‍वी की आंतरिक प्रणाली का अभिन्‍न हिस्‍सा हैं। जब तक पृथ्‍वी है, भूकंप आते रहेंगे। रोजाना दुनिया के विभिन्‍न हिस्‍सों में भूकंप के हजारों छोटे-मोटे झटके महसूस किए जाते हैं। धरती में कंपन आने से पहले भूकंप की चेतावनी भी नहीं दी जा सकती है। 

 

नेपाल में आए हाल के भूकंप के बारे में बियानी कहते हैं कि वर्ष 1887 से 1934 के बीच नेपाल में तकरीबन हर दस साल में एक बार लगभग 7-8 तीव्रता के भूकंप आए हैं। इस बार 81 साल के बाद नेपाल में इतना बड़ा भूकंप आया है। यानी लंबे समय से भूगर्भीय परतों के बीच तनाव था, जो इतने भीषण भूकंप के तौर पर सामने आया है। हिमालय का निर्माण ही हिंद महासागर प्‍लेट (इंडियन प्‍लेट) और यूरेशियन प्‍लेट के बीच सदियों से चले आ रहे टकराव की वजह से हुआ है। इंडियन प्‍लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे दबती जा रही है और इससे हिमालय हर साल करीब 5 मिलीमीटर ऊपर उठता जा रहा है। नेपाल सहित पूरा हिमालय क्षेत्र भूगर्भीय परत के जोड़ यानी फाल्‍ट लाइन के ऊपर खड़ा है। इसलिए यह भूकंप संभावित क्षेत्र माना जाता है। 

 

मंगल तक पहुंच, भूगर्भ से अनजान 

आईआईटी रूड़की के भूकंप प्रौद्योगिक विभाग के अध्‍यक्ष डाॅ. एम. एल. शर्मा का कहना है कि अब तक दुनिया में भूकंप की भविष्‍यवाणी का कोई वैज्ञानिक तरीका विकसित नहीं हो पाया है। हम मंगल पर पहुंचने की बात कर रहे हैं, चांद पर पहुंच चुके हैं लेकिन पृथ्‍वी के 5 किलोमीटर नीचे के बारे में हमें बहुत कम जानकारी है। इसलिए बेहतर है, हम भूकंप के साथ जीना सीख लें। भूगर्भीय संरचना और फाल्‍ट लाइंस (भूगर्भीय परतों के जोड) के आधार पर भूकंप संभावित क्षेत्रों की पहचान जरूर की गई है। तगड़ा भूकंप आने के बाद अक्‍सर भूकंप के हल्‍के झटके यानी आफ्टर शॉक आते हैं। समुद्र में भूकंप के बाद सुनामी जैसे तूफान उठने का खतरा रहता है। एक बार कहीं धरती में कंपन होने के बाद आसपास के क्षेत्रों में आपदा की चेतावनी के वैज्ञानिक तरीके जरूर विकसित हुए हैं। अभी भूकंप की सही-सही भविष्‍यवाणी करना विज्ञान के लिए संभव नहीं है। 

 

अब भू-स्‍खलन का खतरा

नीदरलैंड के इंस्‍टीट्यूट ऑफ जियो-इन्‍फोर्मेशन एंड अर्थ ऑब्‍जर्बेशन के अध्‍ययन के मुताबिक, काठमांडू घाटी के 300 मीटर मिट्टी की परत है, जो हजारों साल पहले वहां किसी झील का अवशेष है। इस वजह से भी काठमांडू घाटी में भूकंप के बाद भू-स्‍खलन का खतरा बढ़ गया है। प्रो. बियानी के मुताबिक, इतने बड़े भूकंप के बाद हिमालय क्षेत्र में हल्‍के कंपन (आफ्टर शॉक) और भू-स्‍खलन का सिलसिला कुछ महीनों से लेकर कई वर्षों तक जारी रह सकता है। भूगर्भीय परतोें के टकराव पर खड़े हिमाचल की मिट्टी नरम है। नेपाल में शनिवार को आया भूकंप अत्‍यधिक भूकंप की श्रेणी में आता है।  हिमालय विश्‍व की सबसे नई पर्वत श्रृंखला है जो भुरभूरी मिट्टी की चट्टानों से बनी है। इसका बड़ा हिस्‍सा बर्फ से ढका है। इसलिए भी भूकंप के बाद भू-स्‍खलन और हिमस्‍खलन (ऐवलैन्च) का खतरा बढ़ जाता है। 

 

 

 

 

 

 

 

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