Advertisement

सच बताना हमारा मकसद - अभिज्ञान प्रकाश

एनडीटीवी में सीनियर एक्जक्यूटिव एडिटर अभिज्ञान प्रकाश टेलीविजन की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। वह न तो बाजार की होड़ देखते है और न ही ब्रेकिंग न्यूज के फेर में पड़ते हैं। महंगाई, गांव, गरीब, किसान अभिज्ञान की खबरों के केंद्र में रहते हैं। इसके पीछे वे मानते हैं कि इन पर चर्चा तो खूब होती है लेकिन जमीन पर काम कुछ भी नहीं होता। ‘न्यूज प्वाइंट’ और ‘मुकाबला’ जैसे चर्चित कार्यक्रमों में अभिज्ञान इन मुद्दों को बखूबी उठाते भी हैं। आउटलुक के साथ विशेष बातचीत में उन्होने मीडिया, सरकार और समाज को लेकर बातचीत की पेश है प्रमुख अंश-
सच बताना हमारा मकसद - अभिज्ञान प्रकाश


आजकल टीवी चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज का जो खेल है उससे आप कहां तक सहमत है?
मैं किसी ब्रांड या किसी चैनल के बारे में कोई बात नहीं कहना चाहता। सबका अपना काम करने का तरीका है और उसी तरीके से चैनल दर्शकों के बीच अपनी पकड़ बनाते हैं।


लेकिन टीआरपी के खेल में जमीनी मुद्दे गायब हो जाते हैं?
सबका अपना-अपना माॅडल है उसी के अनुरुप अपना काम कर रहे हैं। जिसमें जिसको टीआरपी नजर आती है उस पर वह काम करना चाहता है।

 

मौजूदा पत्रकारिता के दौर में आप अपने आप को किस तरह से अलग पाते हैं?
मेरा काम करने का अपना अंदाज है। मेरी जिस विषय में रुचि है मैं उसी विषय को अपना मुद्दा बनाता हूं। आज गांव, गरीब, किसान की बात सरकारें करती हैं लेकिन जमीन पर कितना काम होता है। जब आप वहां जाएं तो पता चलता है। गांव, गरीब, किसान, महंगाई जैसे मुद्दों पर मैं कई सालों से सवाल उठाता रहा हूं और आज भी उठा रहा हूं।

 

 कहा जा रहा है कि बाजारवाद के दौर में इन मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं देता?
कोई ध्यान दे या न दे। मेरा जो अपना काम है वह मैं करता हूं। मेरा अपना पैशन है। मैं लोगों के बीच जाता हूं उनसे पूछता हूं कि उनकी समस्या क्या है। सरकार उनके लिए क्या कर रही है। मैं समस्या तो दूर नहीं कर सकता लेकिन इस मुद्दे को उठा तो सकता हूं।

 

 टेलीविजन की दुनिया में अब इस प्रकार की खबरें कम आती है। ज्यादातर खबरें दिल्ली को केंद्र में रखकर हो रही है?
मैं यही बाते बताना चाहता हूं कि दिल्ली के आसपास भी लोग हैं। दिल्ली से सौ-दो सौ किलोमीटर की दूरी पर किसान आत्महत्या कर रहा है, किसानों का गेहूं सड़ रहा है कोई तो इस सच्चाई को बताए। सांसद संसद में चर्चा कर लेते हैं लेकिन उन गांवों तक नहीं जाते जहां किसान आत्महत्या कर रहा है। अपने ही इलाकों में सांसद नहीं जाता। दिल्ली में अगर कुछ हो जाए तो उसकी चर्चा पूरे देश में हो जाती है लेकिन गांव की भी तो बात होनी चाहिए।

 

आपने किसानों के मुद्दे को बड़ी प्राथमिकता से उठाया। कोई खास वजह?
कोई खास वजह नहीं है। बस मेरा सवाल यह है कि सरकार किसानों के मुआवजे की बात कर रही है। उस किसान के मुआवजे की बात कर रही है जिसके पास जमीन है। लेकिन ऐसे भी तो किसान हैं जो दूसरे की जमीन लेकर खेती कर रहे हैं। उन किसानों का क्या होगा? उनको कौन मुआवजा देगा? मेरे इन सवालों का जवाब हो सरकार के पास तो बताए।

 

 सरकार तो मुआवजा देने की बात करती है?
बिल्कुल करती है लेकिन किसको कितना मुआवजा मिलता है यह भी देखने वाली बात है। मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में जब किसानों की समस्या को जानने गया तो पाया कि जिस पार्टी की प्रदेश में सरकार है उस पार्टी के सांसद के क्षेत्र में किसान बदहाल हैं। क्या सांसद या राज्य सरकार की जिम्मेवारी नहीं बनती है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ करे।

 

आप अपने कार्यक्रमों के जरिए इन मुद्दों को बखूबी उठा रहे हैं क्या आपको लगता है कि इन समस्याओं का कोई समाधान निकलेगा?
समाधान तो सरकार को करना है। मीडिया का जो दायित्व है मैं वह कर रहा हूं। मुझे लगता है कि आजादी के इतने सालों के बाद भी देश की राजधानी से चंद दूरी पर किसानों के ऐसे हालात हैं तो मैं इसे सरकार के सामने उठा रहा हूं। इन समस्याओं का समाधान तो सरकार को करना है। अच्छे दिन की बात तो हो रही है लेकिन कोई किसानों से पूछे कि कहां हैं अच्छे दिन तब हकीकत पता चलेगा। 

 

 आप केवल दिल्ली के आसपास के इलाकों की ही बात कर रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी बहुत समस्याएं हैं। उसके बारे में आपकी क्या राय है?
मैं लगातार यात्राएं कर रहा हूं, जहां तक संभव हो रहा है किसानों के मुद्दों को उठा रहा हूं। मेरी कोशिश है कि मैं देश के अन्य हिस्सों में जाकर लोगों की समस्याएं मीडिया के जरिए सरकार के समक्ष रख सकूं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement