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‘रजाई ओढ़ के सोच रहा हूं, उन्होंने बर्फ कैसे ओढ़ी होगी’

सियाचिन ग्लेशियर से जीवित निकाले गए बहादुर सैनिक लांस नायक हनुमंथप्पा कोप्पाड का आज निधन हो गया। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आज बताया लांस नायक हनमनथप्पा नहीं रहे। उन्होंने सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर अंतिम सांस ली। मद्रास रेजिमेंट के 33 वर्षीय सैनिक के परिवार में उनकी पत्नी महादेवी अशोक बिलेबल और दो वर्ष की एक बेटी नेत्रा कोप्पाड है। कर्नाटक के धारवाड़ के बेटादूर गांव के रहने वाले कोप्पाड 13 वर्ष पहले सेना से जुड़े थे।
‘रजाई ओढ़ के सोच रहा हूं, उन्होंने बर्फ कैसे ओढ़ी होगी’

बीते कई दिनों से लोग उनके स्वस्थ होने की दुआएं कर रहे थे। यहां तक कि लोगों ने इस जवान के लिए अपने अंग तक दान करने की पेशकश की। इस जवान को सोशल मीडिया पर कुछ यूं श्रद्धांजलि दी गई-


अभिषेक मिश्रा- प्रकृति ने जिसको जिंदा रखा, इंसान के हाथ लगाते ही किडनी लीवर सब फेल। हनुमंथप्पा, तेरा वैभव अमर रहे।

 

सुगंधा- रजाई ओढ़ के सोच रहा हूं, उन्होंने बर्फ कैसे ओढ़ी होगी।

 

सुधांशु पाटनी- जब जिंदगी ने भी जीने की आस छोड़ दी थी, तब 6 दिन बर्फ के अंदर कई फीट नीचे दबे होकर भी जिंदा बाहर आने वाले शेरदिल जाबांज लांस नायक हनुमंथप्पा आज 8 दिन बाद अपने देश को ऐसे सपूत बेटे का गौरव देकर शहीद हो गए।

 

दिलीप जोशी- जब हम घरों में दिवाली, होली मनाते हैं और रंगों और दीयों की महक और रौशनी से सराबोर जीवन को पूरे उत्साह से जी रहे होते हैं, तो कहीं दूर सरहद पर, सुदूर रेगिस्तानों में, कहीँ हज़ारों फ़ीट ऊपर बर्फ की चादरों में लिपटे इस धरती माँ के जाबांज सपूत अपने देश की हिफाजत में जान हथेली पर रखे तैयार रहते हैं।
ऐसा नही है कि इस देश का क़र्ज़ सिर्फ उन्हें ही चुकाना होता है, वो क़र्ज़ हम सब पर है, लेकिन वो जज़्बा, वो हौसला, वो जूनून, वो हिम्मत हमारे जवानों में है।

 

रेख्ता- दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफा आएगी

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