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डेंगू हमेशा घातक नहीं

बारिश का मौसम जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाता है डेंगू के मरीजों की भीड़ अस्पतालों और डॉक्टरों के क्लिनिकों में बढ़ने लगती है। जिन डॉक्टरों के यहां सामान्य रूप से मरीज को भर्ती करने की कोई सुविधा नहीं होती उनके यहां भी कुछ बिस्तर लगाकर मरीजों को पानी चढ़ाने के दृश्य आम देखे जा सकते हैं।
डेंगू हमेशा घातक नहीं

कुछ साल पहले तक डेंगू का जो बुखार सिर्फ दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में देखने को मिलता था वह अब देश के दूर-दराज के शहरों में भी फैल चुका है। दिल्ली में डेंगू के शुरुआती वर्षों में इस बुखार के कारण मृतकों की संख्या इतनी अधिक रही कि अब डेंगू का खौफ लोगों के दिमाग में बैठ चुका है हालांकि चिकित्सकों का साफ कहना है कि डेंगू के 99 फीसदी मामले बिलकुल भी घातक नहीं होते भले ही खून में प्लेटलेट्स की मात्रा 10 हजार के स्तर तक ही क्यों न पहुंच जाए।

 

मादा एडीज मच्छर के काटने से होने वाले इस बुखार में सिर्फ एक ही चीज का ध्यान रखना जरूरी होता है कि शरीर में पानी की मात्रा कम न हो। दिल्ली से सटे गाजियाबाद के फिजिशियन डॉ. चक्रपाणि भारद्वाज मजाक में एक मरीज को कहते हैं, 'भाई, चाहे गोल गप्पे का पानी पियो मगर लगातार थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पीते रहो।’ हालांकि बाद में वह गंभीरता से कहते हैं गोल गप्पा तो मजाक की बात है,  सच्चाई यही है कि खून में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए शरीर में पानी की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।

 

हार्टकेयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं कि डेंगू को लेकर एक बात लोगों को समझने की जरूरत है कि डेंगू के 99 फीसदी मामले घातक नहीं होते। इसलिए इस मौसम में बुखार आते ही तुरंत डॉक्टर के पास दौड़ने की कोई जरूरत नहीं है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम डेंगू को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करें और इससे जुड़े जोखिमों के प्रति लोगों को जागरूक करें।

 

डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि डेंगू के किसी भी चार वायरसों में से किसी एक से भी संक्रमित मादा एडीज इजीप्टी मच्छर के काटने से यह बुखार होता है। इसके आम लक्षण हैं तेज बुखार, नाक बहना, त्वजा पर हल्के चकत्ते, कफ और आंखों के पीछे तथा शरीर के जोड़ों में दर्द होना। कुछ बच्चों में त्वचा पर लाल एवं सफेद धब्बेदार चकत्ते हो सकते हैं जिसके साथ-साथ भूख में कमी, मितली एवं उल्टी की समस्या भी हो सकती है।

 

डॉ. अग्रवाल के अनुसार अगर जांच में डेंगू होना तय पाया जाए तो मरीज को दवाइयां लेने के साथ-साथ आराम करना चाहिए और खूब पानी पीना चाहिए। बुखार कम करने और जोड़ों के दर्द को खत्म करने के लिए पारासिटामोल की गोलियां ली जानी चाहिए मगर एस्प्रीन या आईब्रफेन नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इनसे रक्तस्राव का जोखिम बढ़ जाता है।

 

पद्मश्री डॉ. अग्रवाल यह भी कहते हैं कि यदि इस बीमारी से जुड़े सभी जोखिमों की जानकारी आम लोगों को हो जाए तो डेंगू से एक भी मौत नहीं होगी। वह यह भी कहते हैं प्लेटलेट्स की मात्रा अगर 10 हजार से ऊपर है तो मरीज को अलग से प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती है।

 

डॉ. के के अग्रवाल के अनुसार डेंगू में प्लाज्मा का स्राव होना सबसे खतरनाक होता है और यह स्राव बीमारी के तीन से लेकर सात दिनों के भीतर शुरू होता है। तेज पेट दर्द, लगातार उल्टी,  बेचैनी या आलस इसके चेतावनी कारक लक्षण हैं और सीने की रेडियोग्राफी या फिर सीने या पेट के अल्ट्रासाउंट से प्लाज्मा स्राव का पता लगाने में मदद मिलती है।

 

जरूरी सावधानी और समय पर उचित कदम उठाने से डेंगू के मामलों में किसी भी नुकसान को टाला जा सकता है। दिल्ली के फोर्टिस सी डॉक अस्पताल के वरिष्ठ  चिकित्सक डॉ. रीतेश गुप्ता कहते हैं कि डेंगू में प्लाज्मा स्राव का पता चलने पर मरीज का अस्पताल में भर्ती कर उनका इलाज करना ही एकमात्र तरीका है। मरीज को गहन चिकित्सा कक्ष में रखकर नसों के जरिये पानी की मात्रा शरीर में बनाए रखी जाती है और इसके अलावा मरीज के रक्तचाप की लगातार निगरानी की जाती है। सामान्य दवाइयों से प्लाज्मा स्राव का उपचार नहीं किया जा सकता।

 

डेंगू में चिकित्सकों को '20 का फॉर्मूला’ पर नजर रखने की सलाह दी जाती है। इसके तहत यदि पल्स में 20 से अधिक की वृद्धि हो, रक्तचाप 20 से अधिक गिर जाए, रक्तचाप के ऊपर और नीचे के स्तर का अंतर घटकर 20 से कम हो जाए और हाथ में 20 से अधिक रक्तस्रावी निशान दिखें तो डेंगू के मरीज में उच्च जोखिम समझना चाहिए।

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