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80 फीसदी भारतीय डॉक्टर प्रतिबंधित दवाएं लिखते हैं

यह एक कड़वी सच्चाई है मगर देश के करीब 80 फीसदी डॉक्टर धड़ल्ले से मरीजों को वे दवाएं दे रहे हैं जिन्हें हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित सूची में शामिल किया है।
80 फीसदी भारतीय डॉक्टर प्रतिबंधित दवाएं लिखते हैं

इतना ही नहीं 40 प्रतिशत डॉक्टर यह भी कहते हैं कि सरकार ने इन दवाओं को प्रतिबंधित करने के लिए जो तर्क दिए हैं वे उससे सहमत नहीं हैं। यह सभी बातें एक सर्वेक्षण में सामने आई हैं जिसे देश में डॉक्टरों के नेटवर्क ईमेडीनेक्सस ने अंजाम दिया है।

15 और 16 मार्च को देश के 4,892 डॉक्टरों पर किए गए इस सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया है कि 25 फीसदी डॉक्टर मानते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। 75 फीसदी से अधिक डॉक्टर यह राय रखते हैं कि इन दवाइयों में से कम से कम एक को प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए था और कम से कम एक तिहाई डॉक्टर यह भी मानते हैं कि अमेरिका जैसे विकसित देशों की तर्ज पर किसी दवा पर प्रतिबंध लगाने में कुछ अपवाद भी होने चाहिए। जिन दवाइयों को प्रतिबंधित सूची से बाहर रखने की बात ये डॉक्टर कर रहे हैं उनमें कोडाइन और निमेसुलाइड के मिश्रणों के साथ-साथ और कई मिश्रण शामिल हैं।

इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि देश के 60 फीसदी डॉक्टर दवाओं पर इस प्रतिबंध के पक्ष में हैं जबकि 40 फीसदी इसे गैर जरूरी मानते हैं। दवाओं पर प्रतिबंध से दवा उत्पादक कंपनियों और दवा विक्रेताओं के साथ-साथ डॉक्टरों पर भी असर पड़ता है क्योंकि अंतत: वही मरीजों को यह बताते हैं कि उन्हें कौन सी दवा लेनी चाहिए। ऐसे में इस सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया है कि आखिर दवा प्रतिबंध को लेकर डॉक्टर कम्युनिटी क्या सोचती है।

 

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