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आउटलुक विशेष: पाकिस्तानी फौज के शिविर थे आतंकियों के लॉन्च पैड

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम देने वाले जिस दस्ते को स्पेशल फोर्स कहा जा रहा है, उसके कमांडो के लिए भारतीय सेना में एक तय नाम है, लेकिन इस फोर्स के निर्दिष्ट नाम को रणनीतिक कारणों से कभी जाहिर नहीं किया गया। इस फोर्स के सदस्य पैरा-कमांडो हैं। भारतीय सेना के कमांडो ने एलओसी के पार 2008, 2011 और 2013 में भी कार्रवाई की है।
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सूत्रों के अनुसार, मात्र 150 कमांडो के विशेष दस्ते ने एलओसी पार कर पाकिस्तान के सात ठिकाने उड़ा दिए, जहां आतंकी आराम कर रहे थे और भारत में घुसने की ताक में थे। पांच सौ से दो किलोमीटर भीतर घुसकर दो सौ किलोमीटर के क्षेत्र में इन कमांडो ने कार्रवाई की। जिन लॉन्च पैड को तहस-नहस किया गया, वे दरअसल पाकिस्तानी सेना के विभिन्न ब्रिगेड के कैम्प ऑफिस थे, जहां आतंकी आराम कर रहे थे। आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर तो इन लॉन्च पैड कैंप से कई किलोमीटर भीतर की ओर थे। प्रशिक्षण शिविरों के आतंकियों को पहले इन दफ्तरों में लाया जाता है। वे वहां 24 घंटे ठहरते हैं, फिर उन्हें पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश करा देती है।

अमूमन पांच-छह के समूहों में आतंकियों को भारत की ओर भेजा जाता है। भारतीय सेना के रिटायर्ड कमांडो कर्नल सौमित्र राय के अनुसार, ऐसा करते समय पाकिस्तानी फौज गोलीबारी करती है, जिससे भारतीय चौकियों का ध्यान घुसपैठियों की ओर न जाए। इस बार बड़ी संख्या में आतंकियों को घुसपैठ कराने की योजना थी। इसलिए सात लॉन्च पैड्स में इन्हें जमा किया गया था। सूत्रों के अनुसार, एक-एक शिविर में 30 आतंकी जुटे थे। सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी समय रहते मिल गई थी, जिससे सर्जिकल ऑपरेशन की तैयारी की गई। कार्रवाई के पहले सैनिकों की संख्या, सर्च लाइट और दूरबीन की पोजीशन जैसे तथ्य जुटाए गए।

कर्नल राय के अनुसार, पैरा-कमांडो दस्ते को हेलीकॉप्टर से एलओसी के पार कभी नहीं ड्राप किया जाता। पाकिस्तानी फौज की नजरदारी से बचते हुए उन्हें नजदीकी किसी जगह ड्रॉप किया गया होगा और फिर वे पैदल एलओसी पार कर गए होंगे। तीन चरणों में इस तरह की कार्रवाई की जाती है- इनफिल्ट्रेशन, एक्जिक्यूशन और एक्सफिल्ट्रेशन। इनफिल्ट्रेशन यानी घुसपैठ करने में समय लगता है। जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार भारतीय कमांडो 8-10 किलोमीटर भीतर घुसे थे और पहाड़ियों एवं जंगलों के बीच बनाए गए शिविरों पर सामने से हमले की स्थिति से बचते हुए पीठ की तरफ से हमला बोला गया था। सर्जिकल ऑपरेशन का यह अहम तरीका होता है। एक्सफिल्ट्रेशन यानी वहां से निकलते समय नियंत्रण रेखा की ओर कमांडो सीधे चले आए। लौटने में उन्हें समय नहीं लगा।

जानकारों के अनुसार, भारतीय सेना में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए विशेष तौर पर तैयार किए गए कमांडो दस्ते रात के अंधेरे को अपना हथियार बनाते हैं और दुश्मन को अचानक हमला कर अवाक कर देते हैं। दुश्मन के इलाके में घुसकर अधिकतम नुकसान करना ही इस फोर्स का मुख्य टास्क रहता है। सेना में जिस तरह का प्रशिक्षण सैनिकों को मिलता है, उससे कई गुना बेहतर और कड़ा प्रशिक्षण इन कमांडो का होता है। विशेष अभियानों के लिए इन्हें तैयार किया जाता है। इस दस्ते के हथियार भी दूसरों से अलग होते हैं। छोटे और हल्के हथियार जो जबरदस्त मारक क्षमता वाले हों। इन कमांडो के पास शोल्डर लॉन्च्ड रॉकेट भी होते हैं।

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