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खतरे में हैं देश के विश्वविद्यालय, अमर्त्य सेन ने चेताया

जाने माने नोबेल पुरस्कृत अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को लगता है कि भारत में भय का माहौल व्याप्त है। देश के विश्वविद्यालयों पर खतरा मंडराने लगा है। बोलने की आजादी पर बंदिश लगाने की कोशिशें हो रही हैं। उन्होंने नोटबंदी के केंद्र सरकार के कदम को अजीबोगरीब करार दिया है। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का चांसलर हिंदुत्व के एक पैरोकार को बनाए जाने को लेकर भी मोदी सरकार की खिंचाई की है।
खतरे में हैं देश के विश्वविद्यालय, अमर्त्य सेन ने चेताया

उनकी किताब कलेक्टिव च्वायस एवं सोशल वेलफेयर के संवर्धित संस्करण के बाजार में आने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार एक बार फिर उनके निशाने पर हैं। एक ताजा साक्षात्कार में उन्होंने इन मुद्दों को रेखांकित करते हुए अपनी अपनी गहरी चिंता जताई हैं। उन्होंने कहा है कि अर्थशास्त्र का कैशलेस हो जाना अपने आप में कोई बहुत बड़ी बात नहीं लेकिन मान लें अगर ऐसा है भी तो यह इस तरह एक झटके में नहीं किया जा सकता। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा है कि अभी पूरी दुनिया में हो रहे बदलाव में एक बात जो उन्हें चिंतित करती है, वह यह है कि आम लोगों की तर्क करने की शक्ति खासा ह्रास हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बुरे हालात एवं रोजगार के अवसरों में भारी कमी जैसे जिन मुद्दों को हवा देकर चुनाव लड़े वे तथ्यों से परे थे। लोग मुद्दों को विकृत नजरिए से देख रहे हैं। भारत में भी ऐसे कई झूठ हैं जिन्हें लोगों के दिलो दिमाग में बिठाया जा रहा है।

सेन ने नोटबंदी का उदाहरण देते हुए कहा है कि यह एक अजीबो गरीब सोच है। यह समझ में नहीं आता कि नोटबंदी से ऐसा क्या हासिल हो गया। आपने यह सोचकर 86 प्रतिशत मुद्रा को गायब कर दिया कि इससे भारी फायदा होगा। पहले यह तर्क दिया गया कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह कदम जरुरी था। यह एक बेहद कमजोर तर्क था क्योंकि नकद में 6-7 प्रतिशत कालाधन ही है। जब यह तर्क नहीं जमा तो फिर कहने लगे कि अर्थव्यवस्था को तेजी से कैशलेस में तब्दील करने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया।    

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