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मार्क्सवाद व्यक्ति को कम महत्व देता है- राम चंद्र गुहा

साहित्योत्सव 2017 केतीसरे दिन शाम को प्रख्यातविद्वान एवं इतिहासकार डॉ. रामचंद्र गुहा ने कहा कि मार्क्सवाद व्यक्ति को कम महत्त्व देता है। वे अकादेमी की प्रतिष्ठित संवत्सर व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘ऐतिहासिकजीवनी का शिल्प’ विषयक व्याख्यान के दौरान धार्मिक एवं वैचारिक विरासत की चर्चा कर रहे थे।
मार्क्सवाद व्यक्ति को कम महत्व देता है- राम चंद्र गुहा

            डॉ. गुहा ने स्मृतियों को साझा करते हुए बताया कि कैसे वेरियन एल्विन के जीवन एवं कृतित्व ने उन्हें एवं उनके दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया।उन्होंने उनकी जीवनी लेखन bके अपने प्रयत्न को संदर्भित करते हुए जीवनीलेखन की चुनौतियों की चर्चा की।उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक जीवनी इतिहास का वह हिस्सा है, जो साहित्य से सबसे ज़्यादा जुड़ा हुआ है। दरअसल ऐतिहासिक जीवनी इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य के बीच डोलती है।

   इतिहासकारों द्वारा जीवनीलेखन से दूर रहने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने इसका पहला कारण धार्मिक विरासत को बताया।हिंदुत्व जैसे धर्म-कर्म एवं पुनर्जन्म आधारित व्यवस्था पर अपने पारंपरिक विश्वास के नाते वे जीवनीलेखन के विरोधी हैं।दूसरा कारण वैचारिक विरासत है, विशेषकर मार्क्सवाद, चूँकि मार्क्सवाद व्यक्ति को कम महत्व देता है।तीसरा कारण इतिहास का समाजशास्त्र के प्रति झुकाव है, यद्यपि इतिहास साहित्य की शाखा के रूप में शुरूहुआ।चौथा कारण भारतीय अभिलेखों की भिन्नताएँ हैं।देश के केंद्रीय एवं राज्य अभिलेखागार पूरीतरह अव्यवस्थित हैं।पांचवां कारण यह है कि भारतीय लेखक जीवनीलेखन में प्रतिष्ठित व्यक्तियों के दोषों के उल्लेख में संकोची हैं। छठा कारण यह है कि जीवनीलेखन चुनौतीपूर्ण साहित्यिक विधा है।सातवां कारण यह है कि जीवनीलेखन में एकलेखक को अपने अहं को दबाकर दूसरे अहंकारी लेखक के बारे में लिखना होता है। मुख्यतःयही वे कारण हैं, जिनकी वजह से ऐतिहासिकजीवनियों को व्यापक स्वीकृति कभी नहीं मिली। उन्होंने जीवनीलेखन के चार केंद्रीयसिद्धांत बताए। कहा कि पहला तो यह कि  द्वितीयक चरित्र भी कहानी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। दूसरे, जीवनीलेखक को केंद्रीयचरित्र के अलावा अन्य स्रोतों को भी देखना चाहिए, तीसरे सिद्धांत के मुताबिक जीवनीलेखक को पूर्वाग्रही नहीं होना चाहिए और चौथा कहता है कि जीवनीलेखक को दूसरी  जीवनियों  से  प्रभावित  नहीं  होना  चाहिए।

   व्याख्यान के बाद डॉ. गुहा ने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का भी शमन किया।

   शुरुआत अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव द्वारा व्याख्याता के स्वागत और परिचय के साथ हुई। अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने पुष्पगुच्छ और किताबें भेंट कर उनका अभिनंदन किया।

   इससे पूर्व युवा साहित्यानुरागियों ने ‘युवा साहितीः नई फसल,’ में जहां तमिल लेखक बी. जयमोहन, तेलुगु के गोरेटी वेकन्ना, निशांत, मोइन शादाब, अंतरादेव सेन, अकादेमी के पूर्व उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी आदि के विचार/गीत/कविताओं/सीखों का लाभ उठाया, वहीं ‘लेखक सम्मिलन’ में पुरस्कृत लेखकों-- हिंदी की नासिरा शर्मा मैथिली के श्याम दरिहरे, मराठी के आसाराम लोमटे और कश्मीरी में पुरस्कृत अजीज हाजिनी आदि के विचारों और जीवनानुभवों को सुना। ‘कवि अनुवादक’  और सांस्कृतिक संध्या के तहत मेघदूत रंगशाला में प्रस्तुत मणिपुरी नृत्य भी रोमांचक रहा।   

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