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यह वह पार्टी नहीं, जिसमें हम आए थे: शांता कुमार

बतौर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के बाद भारतीय जनता पार्टी में पहली दफा मुखालफत की आवाज सुनाई दी। यह आवाज है पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की जिन्होंने मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटालों पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पत्र लिख पार्टी में हड़कंप मचा दिया। शांता का यह पत्र महज पत्र नहीं है बल्कि भाजपा के अंदर एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की खाई और घुटन का सुबूत है। भाजपा में जो चल रहा है वह इनकी पीढ़ी के नेताओं के लिए हजम न होने वाला माहौल है। पार्टी के घुटन भरे माहौल पर शांता कुमार ने आउटलुक की विशेष संवाददाता से अपने दिल्ली स्थित निवास पर खुलकर बातचीत कीः
यह वह पार्टी नहीं, जिसमें हम आए थे: शांता कुमार

 

मौजूदा दौर की राजनीति में आपके विचारों की कितनी वकत है?

मुझे सब कहते थे कि राजनीति है। सह लो, यहां सब चलता है। जब सब चलेगा तो जो हो रहा है वह होता रहेगा। आजादी के 70 साल बाद भी 60 करोड़ लोग 1,000 रुपये महीने पर गुजारा कर रहे हैं। यह बेईमानी की राजनीति का परिणाम है। सब चलता रहा तो अतिभुखमरी और अति गरीबी बढ़ती जाएगी। जो आर्थिक असमानता, अपराध और नक्सलवाद को जन्म देगी।

 

भ्रष्टाचार पर सरकार के विपक्ष को दिए जवाब से सहमत हैं?

सरकार कह रही है कि हम दागी हैं तो आप भी दागी हैं। यानी हमाम में सब नंगे हैं।

 

इस समय आपको क्या लगता है?

मेरे सामने तीन चित्र हैं। पहला दीनदयाल उपाध्याय का, जिन्होंने कहा- जनसंघ में भ्रष्टाचार हुआ तो पार्टी तोड़ नई पार्टी बनाएंगे। यानी भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस। दूसरी तस्वीर-अटल बिहारी वाजपेयी की जिन्होंने कहा- है कोई माई का लाल जो मेरे नेता पर उंगली उठाए तीसरा चित्र जब एक प्रशिक्षण कैंप के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा था कि दूध के धुले तो हम भी नहीं रहे लेकिन बाकियों से अच्छे हैं। तीनों को देखें तो पार्टी में अवमूलन हुआ है। मेरा कहना है कि रोक सकते हो तो इसे यहीं रोक लो, इससे आगे मत जाने दो।

 

इस जवाब का मतलब क्या समझा जाए?

हताशा और निराशा है। निजी तौर पर मुझे अपने लिए लगता है कि इस महफिल में अब हमारा काम नहीं। वाह-वाही तो दूर हम पार्टी में शायद अब गेस्ट आर्टिस्ट हैं। मैं तो इस दफा लोकसभा चुनाव भी नहीं लडऩा चाहता था लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से मुझपर दबाव डाला गया। 

 

आपने रोकने की बात कही, कैसे रुकेगा?    

कोई व्यवस्था होनी चाहिए। अगर सत्ता पर आसीन होने के बाद कोई नेता गलत जा रहा है तो उसपर कोई चेक हो, डांट-फटकार हो। एसी व्यवस्था हो जो अंदरूनी लोकपाल की तरह काम करे। एथिञ्चस कमेटी बने, जो बड़े से बड़े नेता को भी डांट सके।

 

पार्टी में अनुशानहीनता है क्या ?

मध्य प्रदेश में जो हुआ उसका शोर है। बाकी जगह भी, जहां हमारी सरकारें बनीं वहां समझौते ही हुए हैं। 

 

पार्टी में क्या बात सबसे ज्यादा परेशान कर रही है

पार्टी के अंदर संवाद खत्म हो चुका है। पहले जब सरकार बनी थी तो सांसद बैठक में सभी को बोलने के लिए आधा घंटा मिलता था लेकिन नई सरकार में यह बंद हो गया। अब सभी भाषण सुनते हैं और अपने घर आ जाते हैं। एक मीटिंग में तो बिहार के एक तेज तर्रार सांसद ने दो दफा बोलने की कोशिश की तो उनके हाथ से माइक छीन लिया। उन्हें जबरदस्ती बिठा दिया गया । सवाल करने उठो तो जवाब नहीं। बिठा दिया जाता है। यहां तक कि बैठक भंग कर दी जाती है।

 

इसके लिए क्या होना चाहिए?

पीएम के मन की बात सारा देश सुनता है। हमारे मन में भी बहुत कुछ है, हमारी भी सुनो। कम से कम पार्टी में आदान-प्रदान हो। सत्ता पर बैठे लोगों को पता नहीं लगता है कि जमीनी स्तर पर क्या चल रहा है।

 

क्या सुनाना चाहते हैं?

यही कि जिस परिवार में बच्चे सहमे-सहमे डरे-डरे रहते हैं वे बच्चे बदजुबान हो जाते हैं या बेजुबान हो जाते हैं।    

 

आपको पार्टी में कुछ नेताओं का समर्थन है क्या?

शांता कुमार तो एक ही है। मैंने पत्र के जरिये जो बोला मुझे उसमें बहुत लोगों का समर्थन मिला है। पार्टी के अंदर लोगों ने बोला कि आपने अच्छा किया। किसी न किसी को तो आखिर यह बोलना ही चाहिेए था।

 

इतनी नाराजगी की वजह क्या रही?

मैंने 10 जुलाई को अमित शाह जी को पत्र लिखा। क्या गलत लिखा? यही न कि छींटे पड़े हैं। तो क्या पड़े नहीं हैं? मुझे मेल पर जवाब मिला कि आपका पत्र मिल गया है। मुझसे किसी ऑफिस के अधिकारी ने बात नहीं की। संवादहीनता की यह हालत है कि किसी ने यह तक नहीं पूछा कि यह पत्र आपने क्यों लिखा। कम से कम यही बोल देते कि आपने ऐसा पत्र कैसे लिखा दिया है, आइंदा ऐसा न लिखें। कुछ तो बोलते। अगर मैं 75 साल से ऊपर हूं तो क्या हमारी बात का जवाब भी नहीं देंगे?

 

भाजपा में आपकी पीढ़ी के नेता क्या चाहते हैं?

स्टाइल ऑफ फंक्शनिंग बदलना चाहिए। पार्टी के स्वास्थ्य के लिए संवादहीनता खत्म हो।

 

आपकी पीढ़ी के नेता क्या महसूस कर रहे हैं?

यह वह पार्टी तो नहीं जिसमें हम आए थे। 

 

अनुभवी नेताओं को दरकिनार करने की क्या वजह ?

शायद उन्हें लगता होगा कि पुराने लोग सरकार में किसी पद की मांग न कर लें। 

 

संवादहीनता का परिणाम क्या हो रहा है?

अनार्की। देश की जनता ने हमें चुना है। भाजपा आशा की अंतिम किरण है। इसे इतिहास बनाना चाहिए।

 

व्यापमं पर क्या कहेंगे?

इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। यह कोई साधारण घोटाला नहीं है। ऐसा घोटाला किसी और राज्य में नहीं हुआ। सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में इसकी जांच होनी चाहिए । अगर हम जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो जिस जनता ने हमें जिताकर मौका दिया है वो हमें दोबारा नहीं देगी।

 

आपके पत्र को पार्टी नेताओं ने कांग्रेस के प्रचार में बहने वाला बताया?

ऐसा कहने वालों ने मेरे साथ न्याय नहीं किया। मुझे गलत ढंग से प्रभावित करने वाला कोई पैदा नहीं हुआ।

 

पार्टी से क्या अपेक्षाएं हैं ?

हमारी पार्टी किसी घराने, राजा या जाति विशेष पर आधारित पार्टी नहीं। हमने संघर्ष किया। पार्टी को यहां तक लाए। आज हमारी पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे नेता हैं, जो दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। कम से कम कोई लक्ष्मण रेखा तो होनी चाहिए। कोई किसी को कहने वाला हो। ताकि पार्टी बचाई जा सके। कुछ लोग जिनका कोई व्यापार नहीं, वे करोड़ों के मालिक बन गए। ऐसे लोग ऊंचे पदों पर आगे बढ़ रहे हैं।   

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