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नहीं चाहिए ऐसे पैसे जो संगीत का अपमान कर कमाए गए हों- मिलन सिंह

नब्बे के दशक में जब गायिका मिलन सिंह सिल्वर स्क्रीन पर आईं तो लोग इसी पसोपेश में रहते थे कि वह महिला हैं या पुरुष। वह दोनों आवाजों में गाया करती थीं। तब उनके गीत युवाओं की जुबान पर रहते । खासकर ‘ अक्ख दे इशारे नाल गल कर गई कुड़ी पटोले वरगी ’ और ‘हाणियां तू कर लै प्यार की जिना तेरा जी करदा ’। इन गीतों की वजह से लोग उन्हें पंजाबी समझते लेकिन मिलन सिंह उत्तर प्रदेश में इटावा के एक गांव की रहने वाली हैं और ठाकुर परिवार में जन्मीं हैं। 32 सुपरहिट एलबम देने वाली मिलन सिंह ने हाल ही में संगीत की दुनिया में पुनः वापसी की है। पेश है उनके बातचीत के कुछ अंश-
नहीं चाहिए ऐसे पैसे जो संगीत का अपमान कर कमाए गए हों- मिलन सिंह

 

 

 

मुद्दत से आप गायब हैं क्या वजह रही ?

सेहत संबंधी कुछ दिक्कतें थीं लेकिन अब मैं लौट आई हूं, जल्द ही दमदार सुनने को मिलेगा।

 

आपके संगीत कार्यक्रम में अकसर कई बवाल सुनने को मिलते रहे हैं, क्या कारण है?

हां, ऐसा अक्सर होता रहा है। दरअसल हमें पसंद नहीं है कि अगर हम स्टेज पर गा रहे हैं तो लोग एक दूसरे से बात करें, संगीत का निरादर करें या हाथों में शराब का गिलास लिए झूमें। मैंने जब भी ऐसे कार्यक्रमों में गाया है वहां या तो मैंने स्टेज छोड़ दी या मेरा झगड़ा हुआ है।

 

तब तो आप निजी संगीत कार्यक्रम नहीं करती होंगी?

बिल्कुल भी नहीं। हम कभी भी निजी संगीत कार्यक्रम या शादियों में गाने नहीं जाते हैं। वहां गायक को कोई नहीं सुनता है। गायकी और संगीत का जितना निरादर ऐसे क्रायक्रमों में होता है उतना कहीं नहीं होता। सब लोग अपनी निजी बातों और दारू में मस्त झूमते हैं और गायक बेचारा स्टेज पर अकेला गाता रहता है। मुझे ऐसे पैसे नहीं चाहिए जो मेरे संगीत का अपमान कर कमाए गए हों।  

 

इन दिनों क्या चल रहा है?

इन दिनों मोहम्मद रफी साहब को भारत रत्न देने के लिए लोगों को इक्टठा कर रहे हैं। दुनिया गवाह है कि आज भी हम और हमारे जैसे अनगिनत गायक रफी साहब का कमाया खा रहे हैं। मैंने हाल ही में विदेशों में कई शो किए वहां श्रोताओं की एक ही मांग होती है कि रफी साहब का गीत गाएं। राजेश शन्ना सरीखे बहुत से फिल्मी कलाकारों को बनाया ही रफी साहब के गानों ने हैं लेकिन दुख की बात है कि आज उन्हें कोई याद तक नहीं करना चाहता।

 

इसके लिए क्या कर रहे हैं?

देश विदेश से रफी साहब के चाहवने वालों को इक्ट्ठा कर रहे हैं। सरकार को लिख रहे हैं। मुंबई में एक छोटा से स्मारक उनके नाम पर बनवाया है।

 

आप हमेशा पुरुष वेश में क्यों रहती हैं?

बचपन से हम ऐसे ही हैं। मां हमेशा कबड्डी के मैदान से पकड़ कर लाती थी। लड़कों के साथ ही खेले हैं। हमेशा बुलेट चलाते रहे हैं। चाल-ढाल लडक़ों जैसा रहा है। दोस्त भी पुरुष हैं। 

 

ठाकुर परिवार से हैं तो गायकी की दुनिया में आसानी से आना हो गया?

हमारी मां इसके काफी खिलाफ थीं। हमारे गांव में प्रतिवर्ष  एक संगीत का एक कार्यक्रम हुआ करता था। एक वर्ष आयोजकों का कलाकारों से झगड़ा हो गया। किसी ने स्टेज से घोषणा की कि छुट्टन यहां है तो स्टेज पर आ जाएं। हम भीड़ को चीरते हुए स्टेज की ओर भागे और स्टेज पर जाकर  गाने लगे।  उस समय हम मुश्किल से दस वर्ष के रहे होंगे।  कार्यक्रम के आयोजक को हमारी आवाज बहुत पसंद आई। कई वर्षों तक वह घर आकर मां को मनाते रहे कि मां हमें स्टेज पर गाने की इजाजत दे दे।  लेकिन हम पढ़ाई कर रहे थे और अधूरा नहीं छोड़ना चाहते थे।  फिर एक दिन उन्होंने हमारी मां से कहा कि  अपनी यह बेटी आप मुझे दे दो। हमारी एमए अंग्रेजी भी पूरी हो चुकी थी , मां ने हमें जाने दिया।  

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