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प्रार्थना के साथ पेट पूजा का अधिकार

मुंबई उच्‍च न्‍यायालय ने हाजी अली मजार में महिलाओं के जाने पर लगी रोक हटाने का फैसला दिया, इसे स्‍वागत योग्‍य ही कहा जाएगा। इससे पहले महाराष्‍ट्र के एक शनि मंदिर में भी महिलाओं की अर्चना पर लगी रोक एक आंदोलन के बाद हटी।
प्रार्थना के साथ पेट पूजा का अधिकार

महिलाओं के बीच समान अधिकारों की लड़ाई निरंतर लड़ी जा रही है और उन्‍हें सफलता मिल रही है। भारत के कई धार्मिक नेताओं ने समाज सुधार की दृष्टि से महिलाओं के समान अधिकारों के लिए बड़े अभियान, आंदोलन चलाए। 21वीं शताब्‍दी में जहां भारत में महिला प्रधानमंत्री, राष्‍ट्रपति, लोकसभा  अध्‍यक्ष, मुख्‍यमंत्री, राज्‍यपाल जैसे महत्‍वपूर्ण पदों पर पहुंच चुकी हैं, वहां अमेरिका जैसे देश में अब तक कोई महिला राष्‍ट्रपति नहीं बन पाई। लेकिन विडंबना यह है कि सारे धर्मों में महिलाओं को आदर सहित पूज्‍यनीय दर्जा देने के बाद भी लाखों महिलाओं को अपनी ‘पेट पूजा’ के लिए न्‍यूनतम साधन सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। गांवों से महानगरों तक ऐसी महिलाएं हैं, जिन्‍हें दो वक्‍त का पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। पानी-खाना-छत ही नहीं शौचालय तक की व्‍यवस्‍था उनके लिए नहीं हो पाई है। यों राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन प्रवचन, प्रचार सामग्री और कार्यकर्ता के जरिये महिला कल्‍याण की प्रार्थना करते हैं, लेकिन बालिकाओं को न्‍यूनतम शिक्षा और भर पेट भोजन के लिए अपने खजाने से समुचित धन राशि तक नहीं देते। हर धर्म के नामी उपासना केद्रों के पास अरबों रुपये, सोना-चांदी भरा हुआ है। संपन्‍न ही नहीं मध्‍यम और निम्‍न वर्ग के दान पुण्‍य से खजना बढ़ता रहा। लेकिन महिलाओं को कोई हिस्‍सा-प्रसाद नहीं मिल पा रहा। धार्मिक न्‍यासों, आश्रमों को कोई आयकर भी नहीं देना पड़ता। उम्‍मीद करनी चाहिए कि कभी कोई महिला संगठन या कानूनविद अदालत से धार्मिक - सार्वजनिक खजानों के एक हिस्‍से से महिला कल्‍याण के लिए भी फैसला मांगे। 

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