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कूड़े के ढेर की ऊंचाई

नेताओं और निकम्मी व्यवस्था का नतीजा है कि देश की राजधानी में विभिन्न स्थानों पर कूड़े के ढेर की ऊंचाई कुतुबमीनार से ज्यादा हो गई है। दुनिया में संभवतः अकेली ऐसी राजधानी है, जिसकी व्यवस्था सुविधाओं के लिए सात साधन संपन्न राजनीतिक प्रशासनिक तंत्र लगे हुए हैं।
कूड़े के ढेर की ऊंचाई

केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, चार नगर-निगम इकाइयां और डी.डी.ए. राजधानी को चलाती हैं। स्वच्छ भारत अभियान में अग्रणी भारतीय जनता पार्टी का केंद्र सरकार के साथ सभी नगर निगमों और डी.डी.ए. के प्रशासन पर वर्चस्व है। वही ‘झाड़ूÓ के प्रतीक से जनता की सेवा करने के लिए टोपी लगाए आम आदमी पार्टी की विधानसभा में 67 विधायकों के भारी बहुमत के साथ दिल्ली सरकार है। फिर भी दिल्ली गंदगी और बीमारियों का नए रिकार्ड बना रही है। इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को फटकार लगाने के साथ यह निर्देश देना बिल्कुल उचित है कि ‘विधायक अपनी जवाबदेही से मुंह नहीं मोड़ सकते। दिल्ली में कूड़े के ढ़ेर कुतुबमीनार से ज्यादा होना बेहद दुःखद स्थिति है।Ó मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके साथी विधायक लगातार दिल्ली नगर-निगम के मत्थे जिम्मेदारी डालकर भाषणबाजी करते रहते हैं। लेकिन उनके विधायक यदि अपने क्षेत्र के गली-मोहल्लों में घूमते हुए स्थानीय लोगों के साथ खड़े होंगे, तो क्या नगरपालिका के सभी कर्मचारी अथवा कूड़ा उठाने के लिए ठेके लेने वाली कंपनियों के लोग काम करने से इंकार कर सकते हैं? यों विधायक ही नहीं दिल्ली के स्थानीय सात सांसद भी समय निकालकर इलाकों का हाल देख सकते हैं। यदि समर्थन-विरोध में नारेबाजी, प्रदर्शन इत्यादि के लिए कार्यकर्ता एवं सामान्य लोग मिल सकते हैं, तो चिकनगुनियां, डेंगू तथा गंदगी से होने वाली अन्य बीमारियों की रोकथाम के अभियान में लोग क्यों नहीं साथ रह सकते हैं? नई दिल्ली नगर पालिका तो केंद्र और उपराज्यपाल के निर्देशानुसार अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकती है। डी.डी.ए. ‘विकास’ का तमगा लगाए घूमती है, लेकिन उसकी देख-रेख में चलने वाले कई पार्कों में ही कूड़े और गंदगी के अंबार होते हैं। बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारी या पार्क में तैनात कर्मचारी कागज पर ड्युटी बजा रहे हैं या अधिकारियों की सेवा में लगे हैं। इसलिये उम्मीद की जाए कि सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद दिल्ली के नेता और उनके कर्मचारी राजधानी की ‘नाक’ की रक्षा करेंगे।

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