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दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों के दिल गरीब-वंचित समुदाय के बच्चों के लिए नहीं खुले

शिक्षा के अधिकार कानून का हो रहा उल्लघंन, पीड़ित अभिभावक देंगे गवाही
दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों के दिल गरीब-वंचित समुदाय के बच्चों के लिए नहीं खुले

छोटा सा पांच साल का बच्चा वापस कबाड़ से भरे घर में दिन भर बैठा रहता है। स्कूल नहीं, क्लास नहीं, कोई संगी-साथी नहीं। वह कुछ दिनों के लिए दिल्ली के पॉश इलाके वसंत विहार के संभ्रात स्कूल दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ा। उसके माता-पिता, जो दलित समुदाय से आते हैं, ने पूरी कोशिश करके, बड़े सपनों के साथ उसे इस स्कूल में दाखिला दिलाया था। इस बच्चे के पिता जो कबाड़ी का काम करते हैं और खटिक समुदाय से आते हैं, ने बताया कि बच्चे का दाखिला 2015-16 के लिए दिल्ली पब्लिक स्कूल में कराया था। इसके लिए हमने आय का प्रमाणपत्र भी दिया था और लॉटरी के जरिए बच्चे को दाखिला मिला था। जून में स्कूल वालों ने बुलाया और बताया कि बच्चे का नाम स्कूल से काट दिया गया है क्योंकि हमने झूठा आय प्रमाणपत्र दिया था। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी। उल्टा उन्होंने हमें धमकाने की कोशिश की कि अगर हमने शिकायत की तो पुलिस हमें ही गिरफ्तार कर लेगी।

जबकि हकीकत यह है कि बच्चे के पिता कबाड़ी का काम करते हैं और दलित समुदाय से हैं। कानून के मुताबिक उन्हें अपने बच्चे के दाखिले के लिए आय प्रमाणपत्र की जरूरत ही नहीं है।

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इस तरह के 20-25 परिवार कल अपनी व्यथा, अपने बच्चों के साथ हो रहे भेदभाव, शिक्षा के अधिकार कानून के खुलेआम उल्लंघन की दास्तान सामने रखने जा रहे हैं। ये सारे परिवार देश की राजधानी दिल्ली के ही है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब (आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय) और वंचित (डिसएडवांटेज समूह) समुदाय के बच्चों को निजी स्कूल में दाखिले का जो प्रावधान है, उसके तहत इनके बच्चे निजी स्कूलों में होने चाहिए। दिल्ली में जिन निजी स्कूलों सरकार से रिहायती कीमत पर जमीन मिली, उनके लिए आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बच्चों के लिए 20 फीसद सीटें आरक्षित करने का प्रावधान पहले से था। शिक्षा का अधिकार कानून फोरम की एनी नामाला ने बताया कि दिल्ली में बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूल गरीब और वंचित समुदाय के बच्चों को दाखिला देने से अप्रत्यक्ष रूप से मना कर रहे हैं। दरअसल, वे गरीब और वंचित समुदाय के बच्चों को अपने स्कूलों में दाखिला ही नहीं देना चाहते, इसलिए सारी कोशिश उन्हें ड्रॉप-आउट कराने की करते हैं। ये स्कूल न तो सही ढंग से इन बच्चों की सीटों को प्रचारित करते हैं और दाखिले के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं।

दिल्ली में प्राइवेट स्कूल खुलेआम इस प्रावधान का उल्लघंन कर रहे हैं।  कानून के तहत तमाम प्राइवेट स्कूलों को यह जानकारी सार्जनिक करनी जरूरी है कि उन्होंने कितने बच्चों को इस प्रावधान के तहत दाखिला दिया। इसमें से 1186 स्कूलों ने जानकारी मुहैया कराई, लेकिन 540 स्कूलों ने किसी भी तरह की जानकारी देने से इनकार कर दिया। जिन स्कूलों ने जानकारी दी, उससे पता चलता है कि गरीब औऱ वंचित समुदाय के बच्चों के आवेदन सामान्य श्रेणी के बच्चों से कई गुना ज्याजा आए। इन 1186 सकूलों में इन वर्ग के लिए 22616 सीटें आरक्षित थी, जिसके लिए 2014-15 में उनके पास 16,4575 आवेदन आए, जबकि सामान्य श्रेणी की 81198 सीटों के लिए 253675 आवेदन आए। 

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