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चर्चाः षडयंत्रों का सिरदर्द | आलोक मेहता

सिंहासन के लिए महाभारत और रामायण युग के षडयंत्रों की कहानियां भारत के गौरवशाली इतिहास के साथ सुनाई-पढ़ाई जाती रही हैं। इसलिए अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी को षडयंत्रों की सूचनाओं पर क्या अधिक चिंतित होकर जनता के दरबार में गुहार लगानी चाहिए?
चर्चाः षडयंत्रों का सिरदर्द | आलोक मेहता

आजादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू का कड़ा विरोध करने वाले नेता प्रतिपक्ष में ही नहीं कांग्रेस में भी थे। लेकिन सत्ता से हटाने के लिए षडयंत्रों की चर्चाएं सुनने को नहीं मिली। उनके बाद लाल बहादुर शास्‍त्री का कुछ विरोध था, लेकिन ताशकंद में भारत-पाक वार्ता के बाद आकस्मिक मृत्यु से अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र की आंशकाएं की जाती रही। उसका कोई ठोस प्रमाण अवश्य नहीं मिला। श्रीमती इंदिरा गांधी को तो लगातार देशी-विदेशी विरोध झेलना पड़ा और 1971 का युद्ध एवं चुनाव में भारी बहुमत के बावजूद 1973-74 से 1977 तक षडयंत्रों और उनसे निपटने के लिए उठाए गए सही और गलत कदमों का परिणाम भी भुगतना पड़ा।

राजीव गांधी तो पार्टी के अपनो के षडयंत्रों से ही पराजित हुए और बाद में आतंकवादी षडयंत्र के कारण पुनः सत्ता में आने से पहले शहीद हो गए। नरसिंह राव के गुरु चंद्रास्वामी स्वयं षडयंत्रों के मास्टर थे, ‌फिर भी राव के विरुद्ध राजनीतिक षडयंत्र होते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के विरुद्ध राजनीतिक जोड़-तोड़ होती रही, लेकिन उन्होंने कभी षडयंत्रों को लेकर जनता के बीच आवाज नहीं उठाई। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद हर तीसरे दिन षडयंत्रों का रोना शुरू कर दिया। अपनी पार्टी के असली दिग्गज तक से भयाक्रांत होकर उन्हें पार्टी से निकाल दिया। सोते-जागते उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के षडयंत्र के सपने डराते रहते हैं।

आश्चर्य यह है कि वर्षों तक जमीनी राजनीति और संघ की पृष्ठभूमि के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी सरकार के विरोध के साथ षडयंत्र की चिंता क्यों हो गई? उनके पास भारी बहुमत है। हाल के सर्वेक्षण में भी उनका पलड़ा अन्य दलों के नेताओं से बहुत भारी है। कांग्रेस ही नहीं क्षेत्रीय दल भी अपने अस्तित्व की लड़ाईयां लड़ रहे हैं। अमेरिका, चीन, यूरोप ही नहीं अफ्रीका, ईरान, अफगानिस्तान और कम से कम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ मोदी से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहते हैं। यह ठीक है कि देश में पहले से अधिक महंगाई, बेरोजगारी, सांप्रदायिक, सामाजिक असंतोष बढ़ता जा रहा है। इसलिए विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। जहां तक निहित स्वार्थों या पूर्वाग्रहों वाले कुछ गैर सरकारी संगठनों - एन.जी.ओ की बात है, सर्वशक्तिमान सरकार के पास अनुचित गतिविधियों पर अंकुश तथा हिंसक गतिविधियों को रोकने के पर्याप्त कानूनी हथियार हैं। इसलिए बेहतर यह होगा कि नरेंद्र मोदी विरोध एवं षडयंत्रों का सिरदर्द नहीं पालकर जनहित के कार्यक्रमों के ‌क्रियान्वयन और समस्याओं के निदान के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

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