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असम की 31 आदिवासी लड़कियों को गुजरात-पंजाब में दी जा रही भगवा शिक्षा

आरएसएस के सहयोगी संगठन असम की 31 आदिवासी लड़कियों को गुजरात और पंजाब में भगवा शिक्षा दिला रहे हैं। देश के कानून को धता बताते हुए असम के सीमावर्ती पांच जिलों से आदिवासी माता-पिता को बहला-फुसलाकर उनसे उनकी बेटियों को दूर कर दिया गया है। गुजरात और पंजाब में उन्‍हें हिंदूू जीवन प्रणाली अपनाने पर मजबूर किया जा रहा है।
असम की 31 आदिवासी लड़कियों को गुजरात-पंजाब में दी जा रही भगवा शिक्षा

आउटलुक अंग्रेजी की खोजी खबर के अनुसार यह सब आदिवासी लड़कियों के अभिभावकों की नजरों से दूर हो रहा है। असम से लड़कियों की तस्‍करी कर 20 लड़कियों को गुजरात में हलवाद के सरस्‍वती शिशु मंदिर में रखा गया है। पंजाब में पटियाला के माता गुजरी कन्‍या छात्रावास में 11 लड़कियां रखी गयी हैंं। इनको संघ शासित स्‍कूलों में शिक्षा देने के बहाने हिंदू धर्म की दीक्षा दी जा रही है।

बच्‍चों पर बनाए गए हर नियमाें का उल्‍लंघन करते हुए यह सब किया जा रहा है। असम की छह साल की लड़की श्रीमुक्ति के पिता अधा हसदा ने कहा कि मैं अपनी बच्‍ची को इतनी दूर नहीं भेजना चाहता था। क्‍या होगा जब वह वहां बीमार हो जाएगी। उसको जब मेरी आवश्‍यकता होगी तो वह क्‍या करेगी। मैं उसकी खोज के लिए कहां जाऊंगा?  पर मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया गया।

अधा की तरह मंगल हैंं। इसकी बेटी रानी जो छह साल की है, उसे भी पिछले साल शिक्षा के लिए गुजरात लाया गया। दोनों को यह कहा गया कि वह दोनों साथ रहेंगी। लेकिन अब कहा जा रहा है श्रीमुक्ति पंजाब में है और उसे आगामी चार साल तक नहीं लाया जाएगा। अधा कहता है कि यह कैसी शिक्षा व्‍यवस्‍था है जहां बच्‍चों को उनके अभिभावकोंं से ही नहीं मिलने दिया जाता। उल्‍लेखनी है कि 9 जून 2015 को असम से 3 से 11 साल के बीच की 31 आदिवासी लड़कियाें को पंजाब और गुजरात लाया गया। एक साल के बाद भी वह असम नहीं गई हैं। उनके अभिभावक परेशान हैं।

गुजरात और पंजाब मेंं कहा जा रहा है यह लड़कियां असम के बाढ़ में अनाथ हो गई। लिहाजा इन्‍हें यहां लाया गया है। खबर के अनुसार पटियाला में जहां यह लड़कियां रखी गई हैं, वह अवैध है। उनकी स्थिति बहुत खराब है। वह आरएसएस के स्‍थानीय सदस्‍यों के कब्‍जेे में हैं। गोलपाड़ा की बोडो लड़की देेवी चार साल की है उसको पटियाला में गायत्री मंत्र रटाया जा रहा है। असम की दुखियारी मां रोपी बसुमैत्री कहती हैं कि कोरोबी जो एक संघ कार्यकर्ता है अब कहता है कि मेरी बेटी दीवी तीन या चार साल बाद घर आएगी। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मेडिकल कैंप, बच्‍चों के लिए शिविर, युवा मांओंं के लिए समूह चर्चा यह सब मिशनरी रणनीति होती है। लेकिन आजकल इसे संघ अपना रहा है। 

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