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बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बस्ते के रूप में रोजाना पीठ पर ढो रहे

देश के छोटे बड़े शहरों में भारी-भरकम स्कूल बैग, टिफिन बॉक्स तथा पानी की बोतल लेकर झुकी कमर और तिरछी चाल चलते मासूम स्कूल आते जाते दिख जाएंगे। इन मासूमों से स्कूली बस्ते सहजता से उठते भी नहीं, लेकिन वे स्कूल बैग ढोने के लिए मजबूर हैं। बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बस्ते के रूप में रोजाना पीठ पर ढोते हैं।
बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बस्ते के रूप में रोजाना पीठ पर ढो रहे

सरकार ने हालांकि कहा है कि वह बच्चों पर बस्ते का बोझ कम करने के लिए मानदंड तैयार करने जा रही है। सीबीएसई बस्ते का बोझ कम करने के लिए निर्देश जारी करती है लेकिन इनका अनुपालन सुनिश्चित करना अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। जाने माने शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक प्रो. यशपाल के नेतृत्व वाली समिति ने स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम के बोझ में कमी की सिफारिश की थी, लेकिन दो दशक से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब छात्रों के स्कूली बस्तों का बोझ कम करने के इरादे से सीबीएसई स्कूलों के लिए नया मानदंड तैयार करने पर काम कर रहा है।

मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने भाषा से कहा कि बच्चों को भारी बस्ता ढोना नहीं पड़े, यह सुनिश्चित किये जाने की जरूरत है। हम सीबीएसई स्कूलों के लिए ऐसे मानदंड बनाने की तैयारी में हैं ताकि बच्चों को अनावश्यक रूप से किताब-कॉपी नहीं ले जाना पड़े।

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड :सीबीएसई: ने अपने स्कूलों से दूसरी कक्षा तक के छात्रों के लिए स्कूल बस्ता लेकर नहीं आने और आठवीं कक्षा तक सीमित तादाद में किताबें लेकर आने का निर्देश दिया है। साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय इन मानदंडों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इन पहलुओं पर काम कर रहा है।

बोर्ड ने स्कूल बैग के भार को कम करने की जरूरत बताते हुए कहा है कि कक्षा एक या दो के छात्रों को गृहकार्य न दिया जाए और उच्च कक्षाओं में भी समयसारणी के अनुरूप ही केवल जरूरी पुस्तकें लाना सुनिश्चित किया जाए।

एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों को अपनी किताबें चुनने का हक तो मिल गया है, लेकिन यह अच्छा व्यापार बन कर बच्चों के शोषण का जरिया भी बन गया है। स्कूल अधिक मुनाफा कमाने की फिराक में बच्चों का बस्ता भारी करते जा रहे हैं।

एसोचैम के एक सर्वे के अनुसार, बस्ते के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को नन्ही उम्र में ही पीठ दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसका हड्डियों और शरीर के विकास पर भी विपरीत असर होने का अंदेशा जाहिर किया गया है।

दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूर, मुंबई और हैदराबाद जैसे दस शहरों में करवाए गए इस सर्वे में कहा गया है कि काफी संख्या में बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बस्ते के रूप में रोजाना पीठ पर ढोते हैं। उसके अलावा उन्हें अपनी रुचि के अनुसार स्केट्स बैग तथा क्रिकेट किट जैसा भारी सामान भी किसी न किसी दिन ढोना पड़ता है। ऐसे में बच्चों का किसी तरह के शारीरिक तनाव से प्रभावित होना स्वाभाविक है।

ऐसी शिकायतें देश के विभिन्न हिस्सों से आमतौर पर मिलती है कि स्कूलों के लिए एनसीईआरटी द्वारा तैयार पुस्तकें शैक्षणिक सत्र का काफी समय गुजरने के बाद भी बच्चों तक नहीं पहुंचतीं। जाहिर है कि बच्चों को निजी प्रकाशकों की विभिन्न पुस्तकों एवं कुंजियों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में उन पर पढ़ाई का बोझ कम होने की बात करना बेमानी ही होगा।

हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड :सीबीएसई: ने बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के मकसद से सुझाव दिया है कि शिक्षकों को उच्च कक्षा के छात्रों को वजनदार पुस्तकें लाने के प्रति हतोत्साहित करना चाहिए जबकि स्कूलों को कक्षा दो तक स्कूल में ही पुस्तकें रखने का सुझाव दिया गया है। भाषा

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