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जस्टिस ठाकुर ने हाई कोर्ट के जजों के तबादलों पर मोदी सरकार से मांगा जवाब

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार काे केन्द्र सरकार से सवाल किया कि कोलेजियम की सिफारिशों के बावजूद वह उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों का तबादला क्यों नहीं कर रही है। न्यायालय ने लंबित तबादलों के बारे में विस्तार से दो सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी केन्द्र को दिया है।
जस्टिस ठाकुर ने हाई कोर्ट के जजों के तबादलों पर मोदी सरकार से मांगा जवाब

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसी उच्च न्यायालय में एेसे न्यायाधीशों का निरंतर बने रहना अटकलों और भ्रम को जन्म देता है। न्यायालय ने कहा कि इन सिफारिशों पर बैठे रहने की बजाय केन्द्र को इन पर पुनर्विचार के लिये इन्हें कोलेजियम को लौटा देना चाहिए। 

प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटार्नी  जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, तबादला होने के बावजूद एेसे न्यायाधीशों का उन्हीं उच्च न्यायालयों में बने रहना अटकलों और भ्रम को जन्म देता है। यदि आपको :केन्द्र: इन सिफारिशों से किसी प्रकार की परेशानी है तो उन्हें हमेें वापस भेज दीजिये। हम उन पर गौर करेंगे। इन सिफारिशों पर बैठे रहने का कोई औचित्य नहीं है।

न्यायमूर्ति ठाकुर मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वह उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर लगातार केन्द्र सरकार से सवाल करते रहे हैं और इस मुद्दे पर दोनों :न्यायपालिका और केन्द्र: में टकराव की स्थिति बनी हुयी है। अटार्नी जनरल ने कहा कि कोलेजियम ने 37 न्यायाधीशों के नाम सरकार के पास वापस भेजे है जिन पर गौर किया जा रहा है।

इस पर पीठ ने सवाल किया, न्यायाधीशों के तबादले का क्या हुआ जिनके बारे में कोलेजियम ने सिफारिश की थी? आप इन पर दस महीने से भी अधिक समय से बैठे हैं। रोहतगी ने कहा कि उन्हें तबादलों की सिफारिशें लंबित होने के बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त करने की आवश्यकता है और इसके लिये तीन सप्ताह का वक्त चाहिए।

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा कि सरकार के सर्वोच्‍च विधि अधिकारी के पास ये सारी सूचनायें होनी चाहिए थीं। जेठमलानी ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम आर शाह के तबादले का मामला फरवरी 2016 से लंबित है। उन्होंने कहा, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सरकार की इस व्यक्ति को वहीं पर रखने में क्या दिलचस्पी है? 

इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही वरिष्ठ अधिवक्ता यतीन ओझा ने कहा, स्थिति वास्तव में खराब है। मैं खुली अदालत में पत्रकारों और मीडिया की मौजूदगी में बहुत सी बातें नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि न्यायालय को न्याय और इस संस्थान के हित में कोई न कोई आदेश देना चाहिए। पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि दो सप्ताह के भीतर विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दायर की जाये।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 नवंबर को कहा था कि उसने उच्चतम न्यायालय की कोलेजियम द्वारा विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये 43 नामों की सिफारिश अस्वीकार करने के केन्द्र के दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं किया है और इनमें से अधिकांश नाम दुबारा विचार के लिये भेजे गये हैं। 

केन्द्र ने न्यायालय से कहा था कि उसने विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिये जिन 77 नामों की सिफारिश की गई थी उनमें से 34 को मंजूरी दे दी है। रोहतगी ने 11 नवंबर को कहा था कि केन्द्र पहले ही कोलेजियम के पास पिछले साल तीन अगस्त को प्रक्रिया ज्ञापन का नया मसौदा भेज चुका है लेकिन अभी तक सरकार को उसका कोई जवाब नहीं मिला है।

न्यायालय ने कहा था कि प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप नहीं दिये जाने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया रोकी नहीं जा सकती है। न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित फाइलों की धीमी प्रगति के लिये सरकार को आड़े हाथ लिया था। यही नहीं, न्यायालय ने चेतावनी दी थी कि वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिये वह प्रधानमंत्री कार्यालय और कानून मंत्रालय के सचिवों को तलब कर सकता है। न्यायालय का कहना था कि यदि सरकार को किसी नाम पर आपत्ति है तो वह कभी भी कोलेजियम के पास आ सकती है। भाषा एजेंसी 

 

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