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आसानी से अपना काला धन सफेद कर सकती हैं पार्टियां

राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं के खाते में नकदी डालकर अपने काले धन को सफेद बनाने का प्रयास कर सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री की पहल को मात्र लोकप्रियता हासिल करने के लिए उठाया गया कदम करार दे रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इससे राजनीतिक दलों द्वारा काले धन के इस्तेमाल पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
आसानी से अपना काला धन सफेद कर सकती हैं पार्टियां

 

अगले कुछ माह में देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल कमर कस चुके हैं और उन्होंने अपनी रैलियां और प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफेसर एवं प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे ने कहा, आने वाले चुनाव में काले धन का इस्तेमाल इस बार भी पहले की ही तरह होगा। नोट बदलने की इस प्रक्रिया से आने वाले चुनाव में काले धन के प्रयोग पर कतई फर्क नहीं पड़ेगा।

अपने तर्क के लिए उन्होंने 1978 का उदाहरण देते हुए कहा कि तत्कालीन गवर्नर आई.जी. पटेल ने मोरारजी देसाई सरकार के पांच और दस हजार रुपये के नोट बंद करने के सुझाव को नकार दिया था। पटेल ने कहा था कि अब लोगों के बीच काले धन को नकदी के रूप में रखने का प्रचलन नहीं है। दुबे ने कहा कि सभी राजनीतिक दल पहले से ही बेनामी खाते खुलवाकर उनमें इस प्रकार का पैसा जमा करा चुके हैं या उसे सोना-हीरा और अचल संपत्ति में बदल चुके हैं। अफरा-तफरी का माहौल खत्म हो जाने के बाद फिर उस पैसे को बाहर लाकर इस्तेमाल किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि इस समय काला धन बैंकिंग प्रणाली में ही समाहित है, इसलिए नोट बदलने से चुनाव में प्रयोग होने वाले कालेधन में कोई कमी नहीं आएगी। राजनीतिक पार्टियों ने अगले कुछ महीनों में होने वाले चुनाव के लिए चंदे और सदस्यता के जरिये पर्याप्त धनराशि एकत्र कर रखी है, लेकिन चुनाव से पहले 500 एवं 1000 रुपये के मौजूदा नोटों का चलन बंद होने से वह राशि चुनाव से ठीक पहले बेकार होने वाली है, इसलिये पुराने नोटों का चलन पूर्णत: बंद होने से पहले इस राशि को ठिकाने लगाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा उसे अपने कार्यकर्ताओं के खाते में जमा कराकर सुरक्षित कराए जाने की आशंका जताई जा रही है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म में उत्तर प्रदेश के प्रमुख संयोजक डॉक्टर लेनिन के अनुसार, राजनीतिक दल अपनी राशि का इस्तेमाल कार्यकर्ताओं को दस-दस, बीस-बीस हजार रुपये या उनकी आर्थिक हैसियत के अनुपात में बांटने का प्रयास निश्चित रूप से करेंगे। इसके लिए सरकार के अधिकारियों एवं एजेंसियों को अगले दो-तीन माह तक सतर्क निगरानी करने की जरूरत है। उन्होंने बताया, इससे पहले भी ऐसा हुआ है कि राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं में पैसा बंटवाते हैं।

लेनिन ने एडीआर संस्था की रपट के हवाले से बताया कि उत्तर प्रदेश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के पास धन के बड़ी तादाद में अग्यात स्रोत हैं। बसपा की कुल आय 585 करोड़ रुपये है जिसमें से 307 करोड़ रुपये उसे स्वैच्छिक दानदाताओं से मिले है, जिनका योगदान 20,000 रपये से कम था। पार्टी को 20 हजार रुपये से कम की राशि दान करने वाले का नाम बताने की जरूरत भी नहीं पड़ी।

एडीआर की ही एक अन्य रपट के अनुसार उत्तर प्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव में 84 फीसद इच्छुक उम्मीदवार ठेकेदार, बिल्डर, खनन माफिया, शिक्षा माफिया और चिटफंड कंपनी चलाने वाले लोग हैं। रपट में इन सबके चुनाव लड़ने की स्थिति में बड़े पैमाने पर काले धन के प्रयोग की आशंका जताई गई है। भ्रष्टाचार पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया में भारतीय शाखा के प्रमुख एवं मुख्य कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, यह हमेशा से होता रहा है कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए पैसे बंटवाती हैं। पुराने नोट बंद होने से वे ज्यादा से ज्यादा पैसा सफेद करने का हर संभव प्रयास करेंगी।

उन्होंने कहा, सरकार को मौजूदा प्रक्रिया में चार हजार रुपये के नोट बदलवाने के लिए भी लोगों का पैन अथवा खाता अनिवार्य करना चाहिए था। मतदाता पहचान पत्र दिखाकर पैसा जमा करवाने से एक सुराख छूट गया लगता है। मतदाता पहचान पत्र से आपके बैंकिंग प्रणाली से जुड़े होने का पता नहीं चलता और इसके

 

जरिये लोग कई...कई बार जाकर पैसा जमा कर रहे हैं। इसके लिए सरकार को बैंकों के साफ्टवेयर को उन्नत कर उसे पैन अथवा आधार कार्ड से जोड़ना चाहिए था, ताकि स्त्रीधन के बहाने कोई काली कमाई को सफेद में नहीं बदल सकें।

झा ने बताया कि चुनाव को कालेधन से मुक्त कराने के लिए प्रधानमंत्री को चुनावी सुधार जैसे कदम उठाने चाहिये थे। नोटों को बदलने से कालेधन पर ज्यादा चोट नहीं पड़ेगी। इसके अलावा सरकार को नोट बदलने से पहले पूरी तैयार करनी चाहिये थी और कोई सुराख नहीं छोड़ना चाहिये था।

उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के बैंकों से पैसे की निकासी में तेजी दर्ज की गई है। इसके साथ ही चुनाव से पहले राज्य में बड़ी गाडि़यों की खरीद में बहुत तेजी आई है। मीडिया में काले धन को सफेद बनाने के लिए गरीबों के जनधन खाते का प्रयोग करने की खबरें भी आ रही हैं। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने भी काले धन के लिए की गई इस पहल पर बवाल करने वाली पार्टियों से उनकी परेशानी का कारण पूछा था।

हालांकि रामनाथ झा ने थोड़ा मजाकिया लहजे में कहा कि लोकसभा चुनाव में मोदी द्वारा जनता के खाते में काले धन का पैसा आने का किया गया वादा, भले ही पूरी तरह से नहीं लेकिन कुछ हद तक तो पूरा ही होने वाला है। अब राजनीतिक पार्टियां अपना काला धन सफेद बनाने के लिए अपने ही कार्यकर्ताओं के खाते का प्रयोग कर सकती हैं, इससे जैसे भी हो, गरीबों के खाते में काला धन का पैसा तो आ ही जाएगा। झा ने कहा कि सरकार का यह कदम बहुत सराहनीय और साहसिक है, लेकिन इसके सारे सुराख पूरी तरह से बंद करने के लिए सरकारी अधिकारियों और एजेंसियों को कई माह तक सतर्क रहने की आवश्यकता है।(एजेंसी)

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