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समाजवादी चिंतक व कवि कमलेश का निधन

प्रख्‍यात समाजवादी चिंतक, संपादक और कवि कमलेश का शनिवार सुबह दिल्‍ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। वह 78 वर्ष के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे।
समाजवादी चिंतक व कवि कमलेश का निधन

सत्‍तर के दशक में दिल्‍ली में समाजवादी आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों का केंद्र रहे कमलेश डॉ. राममनोहर लोहिया के काफी निकट रहे। कमलेश के निधन से हिंदी जगत और समाजवादी आंदाेलनों से जुड़े लोगों में शोक व्‍याप्‍त है। जनसत्‍ता के संपादक ओम थानवी ने फेसबुक पर कमलेश के निधन की जानकारी देते हुए लिखा है, बड़ी दुखद खबर है: कल रात कवि कमलेश गुजर गए। लोहिया की पत्रिका 'जन' और साप्ताहिक 'प्रतिपक्ष' के यशस्वी संपादक, इमरजेंसी में बड़ौदा डाइनामाइट कांड के लड़ाके, 'जरत्कारु', 'खुले में आवास' और 'बसाव' के रचयिता अचानक किसी और दुनिया में जा बसे। उनसे वैचारिक मतभेद बहुत था, पर उनसे सीखा भी बहुत। उनसा स्नेह कोई दूसरा न दे सकेगा। 

 

सन 1937 में उत्‍तर प्रदेश के गोरखपुर में पैदा हुए कमलेश 20 साल की उम्र से ही राजनीति और साहित्‍य के क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे। वर्ष 1958 में वह उस समय की चर्चित पत्रिका 'कल्‍पना' के संपादन मंडल में शामिल हुए। उसके बाद उनका रुझान समाजवादी विचारों और आंदोलनों की ओर बढ़ता गया। सत्‍तर के दशक में वह लोहिया की पत्रिका जन के संपादक बन गए थे। इसके बाद वह साप्‍ताहिक 'प्रतिपक्ष' के संस्‍थापक संपादक रहे, जिसके प्रधान संपादक जॉर्ज फर्नांडीस थे। मंगलेश डबराल, गिरधर राठी और रमेश थानवी जैसे हिंदी के कई नामी लेखक उस समय 'प्रतिपक्ष' में कमलेश के संपादकीय समूह में शामिल थे। आपातकाल के दौर में 'प्रतिपक्ष' इंदिरा गांधी की नीतियों की आलोचना और समाजवादी विचारों का एक प्रमुख मंच बन गया था। 

आपातकाल के दौरान बड़ौदा डायनामाइट कांड में जेल गए कमलेश के तीन काव्‍य संग्रह 'जरत्कारु', 'खुले में आवास' और 'बसाव' प्रकाशित हैं। वह प्रो. मधु दंडवते, केदारनाथ सिंह, डीपी त्रिपाठी और किशन पटनायक के भी काफी करीब थे। 

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