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ब्रजेश मिश्रा थे आडवाणी-वाजपेयी में मतभेद की वजह

भारत की विदेश गुप्तचर संस्‍था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुलत की आने वाली किताब ‘कश्मीरः द वाजपेयी ईयर्स’ के अंश और खुद दुलत के मीडिया में चल रहे इंटरव्यू ने एक बार फिर कांग्रेस को भाजपा पर हमलावर होने का मौका दे दिया है।
ब्रजेश मिश्रा थे आडवाणी-वाजपेयी में मतभेद की वजह

दुलत के खुलासों से उत्साहित कांग्रेस ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रवाद महज दिखावा है। हकीकत यह है कि समय आने पर पार्टी आतंकवाद से समझौता कर लेती है। पार्टी प्रवक्ता अजय कुमार ने पत्रकारों से कहा कि चाहे कंधार कांड हो या सलाहुद्दीन के बेटे को मेडिकल में दाखिला दिलाना भाजपा की सरकारें हमेशा आतंकवादियों के साथ समझौता करती रही हैं। कुमार ने कहा कि पूर्व रॉ प्रमुख के कुछ खुलासे व्यथित करने वाले हैं।

यूं तो दुलत की यह किताब मुख्य रूप से वाजपेयी शासनकाल की कश्मीर नीति के आस पास ही केंद्रित है मगर दुलत ने अपने इंटरव्यू में वाजपेयी काल में भारत-पाक संबंध, 2002 के गुजरात दंगों आदि पर भी उस समय के तथ्य सामने रखे हैं। वाजपेयी काल की घटनाओं को दुलत नए नजर से देखने का मौका मुहैया कराते हैं।

 

आगरा शिखर सम्मेलन इसलिए विफल रहा

वाजपेयी शासन के दौरान सबसे चर्चित घटनाओं में एक था तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ का भारत दौरा और आगरा शिखर सम्मेलन। इस दौरे से दोनों देशों में लोगों ने काफी उम्मीदें लगा रखी थीं मगर आखिरकार यह दौरा विफल साबित हुआ। दुलत ने एक इंटरव्यू में कहा कि दरअसल इसके लिए पाकिस्तान का वह रवैया जिम्मेदार था जिसमें उसने भारतीय शासनतंत्र में सिर्फ वाजपेयी और उनके सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा को ही सर्वेसर्वा मान लिया था और तब के गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री लालकृष्‍ण आडवाणी की उपेक्षा कर दी थी। नतीजतन आडवाणी खेमे ने दोनों देशों को किसी समझौते पर नहीं पहुंचने दिया और यह पहल बेकार चली गई।

 

आडवाणी-वाजपेयी में मतभेद की एक वजह थे ब्रजेश मिश्रा

पूर्व रॉ प्रमुख ने अपने इंटरव्यू में एक सनसनीखेज खुलासा यह किया है कि वाजपेयी की सरकार दरअसल उनके प्रधान सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा चला रहे थे। यह पूछे जाने पर कि क्या वाजपेयी इतने कमजोर थे कि ब्रजेश मिश्रा ने सरकार की कमान संभाल ली थी, दुलत ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता। दरअसल मिश्रा और वाजपेयी की सोच का स्तर इतना मिलता था कि वाजपेयी को अपना कोई निर्देश मिश्रा को कह के नहीं बताना पड़ता था, मिश्रा पहले ही सब समझ जाते थे। ब्रजेश मिश्रा की सरकार में इस हैसियत के कारण भी आडवाणी और वाजपेयी में मतभेद रहा करते थे क्योंकि आडवाणी को लगता था कि सरकार में ब्रजेश मिश्रा का महत्व उनसे भी ज्यादा है। हालांकि भाजपा के इन दोनों शीर्ष पुरुषों के बीच मतभेद की बहुप्रचारित खबरों के बारे में दुलत ने कहा कि ऐसा एक स्तर तक ही था क्योंकि तमाम मतभेदों के बावजूद आडवाणी हमेशा वाजपेयी को अपना नेता मानते थे।

 

कंधार विमान कांड से निबटना पूरी तरह गड़बड़‌ियों से भरा था

वाजपेयी शासन काल में भारत की गुप्तचर सेवा के प्रमुख रहे दुलत ने अपनी किताब और एक इंटरव्यू में दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 के अपहरण से संबंधित मामले का विस्तार से जिक्र किया। तत्कालीन रॉ प्रमुख के अनुसार उस मामले से निबटने में संकट प्रबंधन समूह पूरी तरह विफल रहा था। जब 24 दिसंबर, 1999 को जहाज अमृतसर में उतरा तो पांच घंटों तक इस समूह की मीटिंग ही होती रही और आखिरकार प्लेन अमृतसर से उड़ गया। पंजाब पुलिस के प्रमुख सरबजीत सिंह ने दावा किया कि उन्हें प्लेन को रोके रखने का कोई निर्देश केंद्र से नहीं मिला इसलिए उन्होंने इसके लिए प्रयास नहीं किया। इसके कारण देश में ही इस मसले से निबटने का मौका गंवा दिया गया। बाद में भारत सरकार ने दुबई हवाईअड्डे पर कार्रवाई करने की इच्छा जताई मगर संबंधित सरकार ने अनुमति नहीं दी और यहां तक कि अमेरिका ने भी यूएई सरकार पर इस मामले में दबाव डालने से इनकार कर दिया। नतीजतन अपहर्ता विमान को कंधार ले जाने में कामयाब हो गए और बाद में भारत सरकार को यात्रियों की रिहाई के बदले तीन आतंकियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्ताक अहमद जर्गर को अपहरणकर्ताओं को सौंपना पड़ा था। भारतीय आकाश से विमान के निकल जाने के बाद इस समूह की बैठक में अधिकारियों ने एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिया। नौकरशाहों के दो गुट बन गए। एक गुट ने एनएसजी के तत्कालीन प्रमुख निखिल कुमार सिंह को यह कहते हुए इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि विमान को अमृतसर में रोके रखने की जिम्मेदारी उनकी थी। दूसरी ओर एनएसजी प्रमुख के गुट ने इसके लिए तत्कालीन कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि वह समय पर फैसला नहीं ले पाए।

 

फारूख अब्दुल्ला ने वाजपेयी सरकार को बताया था कमजोर

अपनी किताब में दुलत ने आतंकियों को लेकर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारूख अब्दुल्ला के सख्त रुख का विस्तार से जिक्र किया है। दुलत के अनुसार कंधार कांड के समय तो अब्दुल्ला आतंकियों को छोड़ने के खिलाफ थे ही मगर उससे भी पहले 1989 में केंद्र में वी.पी. सिंह की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण के बाद पांच आतंकवादियों को छोड़ने की मांग पर तब मुख्यमंत्री रहे अब्दुल्ला ने साफ इनकार कर दिया था। उस समय केंद्र सरकार ने आईबी प्रमुख रहे दुलत को फारूख को समझाने भेजा था। दुलत ने लिखा है कि कंधार कांड के समय केंद्र सरकार ने फिर उन्हें ही फारूख को मनाने भेजा मगर इस बार फारूख ने साफ इनकार कर दिया। खास बात यह है कि तब फारुख एनडीए का हिस्सा थे। इसके बावजूद दुलत से बातचीत में वह बार-बार भड़कते रहे और दिल्ली (केंद्र सरकार) को कमजोर करार देते रहे। यहां तक कि सरकार में बैठे लोगों को मूर्खों की मंडली बताया और दुलत के सामने ही विदेश मंत्री जसवंत सिंह को फोन कर उन्हें झाड़ लगाई। वह तीन घंटे तक गुस्से में अलग-अलग जगह फोन करते रहे। दिल्ली में किसी को फोन कर उन्होंने कहा कि मैं इस कश्मीरी (आतंकी मुस्ताक अहमद जर्गर) को किसी हाल में नहीं छोड़ूगा। बाद में गुस्स में ही वह रात में 10 बजे अपना इस्तीफा सौंपने गवर्नर गैरी सक्सेना के पास चले गए और उन्हें बताया कि वह आतंकियों को रिहा करने की किसी योजना का हिस्सा नहीं बनना चाहते इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं। तब गवर्नर ने उन्हें समझाया। दुलत के अनुसार गवर्नर ने जॉनी वाकर ब्लैक लेबल की एक बोतल खोली और उसके घूंट भरते हुए डॉ. अब्दुल्ला को शांत किया। उन्होंने फारूख से कहा कि आप पल्ला नहीं झाड़ सकते। दिल्ली ने अगर यह फैसला लिया है तो कुछ सोच कर ही लिया होगा। इसके बाद डॉक्टर अब्दुल्ला शांत हुए।

 

आईबी के श्रीनगर प्रमुख ने आतंकी के बेटे को मेडिकल में प्रवेश दिलाया था

दुलत के अनुसार इंटेलिजेंस ब्यूरों के श्रीनगर प्रमुख ने हिजबुल मजाहिदीन के आतंकी सैयद सलाहुद्दीन के बेटे को मेडिकल स्कूल में दाखिला दिलाने में मदद की थी। इसके लिए उनका संपर्क सलाहुद्दीन से बना हुआ था। हालांकि दुलत ने यह कहते हुए इस कदम का बचाव किया है कि कई बार गुप्तचर कार्यों के लिए इस प्रकार की मदद पहुंचानी पड़ती है।

 

2002 के दंगों के कारण हारे 2004 का चुनाव

पूर्व रॉ प्रमुख के अनुसार जब 2004 का लोकसभा चुनाव वाजपेयी सरकार हार गई तो अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बैठक के दौरान यह कबूल किया कि 2002 के गुजरात दंगे एक गलती थी। उन्होंने कहा, ‘वो (दंगे) हमारे से गलती हुई।’ दुलत ने कहा कि दरअसल वाजपेयी का इशारा इस ओर था कि उन दंगों के कारण वह लोकसभा चुनाव हार गए। गौरतलब है कि इन दंगों के बाद ही गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रचंड बहुमत से आई और नरेंद्र मोदी दोबारा मुख्यमंत्री बने। इसके बाद से गुजरात में लगातार भाजपा की सरकार है और मोदी अब देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं।

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