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लोकतंत्र में बोलने की आजादी को हल्के में नहीं ले सकते: कमल हासन

सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिये जर्मनी में हिटलर के सत्ता में आने और भारत में आपातकाल के ऐतिहासिक घटनाक्रमों का जिक्र करते हुए अभिनेता कमल हासन ने कहा कि हम बोलने की आजादी को हल्के में नहीं ले सकते। साथ ही हासन ने लोकतंत्र में बोलने की आजादी के संरक्षण के लिए सतत निगरानी को जरूरी बताया।
लोकतंत्र में बोलने की आजादी को हल्के में नहीं ले सकते: कमल हासन

मशहूर अभिनेता कमल हासन ने शनिवार की शाम बोस्टन स्थित हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित सालाना इंडिया कांफ्रेंस में कहा, कई बार लोकतंत्र को केवल बोलने की आजादी के मंच के तौर पर पेश किया जाता है। यह चलता रहता है। इसके संरक्षण के लिए सतत निगरानी जरूरी है। उन्होंने कहा, एडोल्फ हिटलर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही सत्ता में आया था। भारतीय राजनीतिक इतिहास में आपातकाल लागू किया गया और आवाजों को दबा दिया गया। भारत में सेंसर बोर्ड के कामकाज में बदलाव की सिफारिश करने वाली सुधार समिति में शामिल हासन ने अपने संबोधन में कहा कि बोलने की आजादी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। मैंने यहां और भारत में इस बात को औपचारिक रूप से कहा है कि हम बोलने की आजादी को हल्के में नहीं ले सकते और यह नहीं सोच सकते कि लोकतंत्र का अर्थ स्वत: ही बोलने की आजादी हो जाता है।

हालांकि हासन ने कहा कि वह भारत के लोकतंत्र की आलोचना नहीं कर रहे हैं और उन्हें तो इस पर गर्व है और चाहते हैं कि यह देश पूरी दुनिया के लिए मिसाल पेश करे। उन्होंने कहा, केवल भारत नहीं, बल्कि दुनिया बदलाव के दौर से गुजर रही है। दुनिया के सामने नई चुनौतियां आएंगी और नए अवसर मिलेंगे। हम चाहते हैं कि भारत संतुष्ट नहीं हो जाए और विश्वस्तरीय मानक तय करे। अभिनेता ने कहा कि राजनीति में धर्म अच्छी बात नहीं है।

इसी सम्मेलन में भारतीय फिल्मकार करण जौहर ने कहा कि बॉलीवुड आत्मनिर्भर है और एकमात्र फिल्म उद्योग है जिसे हॉलीवुड के समर्थन की जरूरत नहीं है। उन्होंने अमेरिकी फिल्म उद्योग में प्रियंका चोपड़ा की सफलता के सवाल पर हॉलीवुड फिल्मों में भारतीय कलाकारों के काम करने पर गर्व होने की बात कही। जौहर ने कहा, मुझे नहीं लगता कि हॉलीवुड सितारे हमारे सिनेमा में ज्यादा कुछ कर सकते हैं। मुझे गर्व है कि हॉलीवुड में भारतीय अभिनेताओं और अभिनेत्रियों पर अधिक नजरें हैं।

अभिनेता इमरान खान ने इस सम्मेलन में भारत में एलजीबीटीक्यू के अधिकारों पर परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा, मेरा फिल्म उद्योग इस समुदाय को जिस तरह से पेश करता है, उससे मुझे गर्व नहीं होता। उन्होंने कहा, मुझे डर है कि यह उन कुछ चीजों में शामिल है जिससे वैश्विक स्तर पर हमारे देश को असहज महसूस करना पड़ता है। जब हम भारत के उभरने की और अभूतपूर्व तरक्की की बात कर रहे हैं, तब हम दुनिया की नजर में भी हैं। दुनिया हमारी तरफ निहार रही है कि हम इस मामले में क्या करते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही इस तरह का विभाजन खत्म होगा और हिंदी फिल्मों में भी यह बात झलकेगी।

 

 

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