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क्या यह घोटाला ‘सेंसर’ होगा

कैग की एक रिपोर्ट में सेंसर बोर्ड द्वारा वर्ष 2012-15 के दौरान कई शर्तों की अवहेलना के लिए और किसी कानून या प्रावधान पर ध्यान दिए बिना ही 172 ए श्रेणी की कई फिल्मों को यूए श्रेणी में डाले जाने तथा यू श्रेणी की 166 फिल्मों को यूए श्रेणी में डाले जाने की आलोचना की है। यह जानकारी एक आरटीआई के जवाब में मिली है।
क्या यह घोटाला ‘सेंसर’ होगा

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को दस्तावेजों से कथित छेड़छाड़ और फिल्म प्रमाण पत्र जारी करते हुए पक्षपात करने के लिए अभ्यारोपित किया है।

 

एक अक्तूबर 2013 से 31 मार्च 2015 तक की अवधि के लिए सीबीएफसी, मुंबई द्वारा तैयार किए गए खाते की जांच रिपोर्ट में कैग ने कई क्षेत्रों में चिंताजनक रुख अपनाने के लिए बोर्ड की आलोचना की। इन क्षेत्रों में  ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के अधूरे डाटा-एंट्री का काम भी शामिल है, जबकि सीबीएफसी के कामकाज के डिजीटलीकरण में एक बड़ी रकम लगी है।

 

आरटीआई  कार्यकर्ता विहार दुर्वे द्वारा पूछे गए सवाल के 70 पन्नों के जवाब में कैग ने कहा कि सीबीएफसी के रिकॉर्डों के परीक्षण में उसने पाया कि सीबीएफसी ने किसी कानून या प्रावधान पर गौर किए बिना 172 ए श्रेणी की फिल्मों को यूए श्रेणी की फिल्मों में और यूए श्रेणी की 166 फिल्मों को यू श्रेणी की फिल्मों में बदल दिया, जिसके कारण फिल्मों का अनियमित रूपांतरण हुआ।

 

कैग ने यह भी पाया कि डिजीटलीकरण पर भारी रकम खर्च किए जाने के बावजूद सेंसर प्रमाण पत्रों की लगभग 4.10 लाख प्रविष्टियां और फीचर फिल्मों के 60 लाख पन्ने अभी भी डिजीटल रूप में परिवर्तित होने बाकी हैं।

 

रिपोर्ट में कहा गया, क्रमश: छह और बारह वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी प्रमाण पत्र शुल्क और कर में कोई संशोधन नहीं किया गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सीबीएफसी को वर्ष 2011 से 2013 तक प्रमाण पत्र शुल्क के रूप में लगभग 14 करोड़ रुपए मिले जबकि इसे इसी अवधि में कर के रूप में 5.5 करोड़  रुपए मिले।

 

कैग ने यह भी पाया कि आधिकारिक रिकॉर्डों के मुताबिक, गैब्रियल और थ्री कैन प्ले दैट गेम नामक फिल्मों की जांच जे एस महामुनी और एस जी माणे ने फरवरी 2009 में की थी। हालांकि सीबीएफसी द्वारा जारी प्रमाण पत्र दर्शाते हैं कि फिल्मों का परीक्षण अध्यक्ष की सचिव वी के चावक द्वारा 30 मार्च 2009 को किया गया। जबकि इन फिल्मों के पुर्नपरीक्षण के लिए दोबारा आवेदन किया ही नहीं गया था।

 

इसे एक घोटाला करार देते हुए और सेंसर गेट कहकर पुकारते हुए दुर्वे ने बोर्ड की कड़ी आलोचना की। सेंसर बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रवण कुमार के बेंगलूरू में होने के कारण उनसे संपर्क नहीं हो सका। अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने कहा, ‘मेरे पास जांच रिपोर्ट नहीं है। ये घटनाएं काफी पहले की हैं, जब मैं प्रभारी नहीं था। लेकिन मैं यह जरूर सुनिश्चित करूंगा कि इस तरह की अनियमितताएं भविष्य में न हों।’

 

बोर्ड के एक अन्य अधिकारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर कहा, ‘यह एक जांच रिपोर्ट मात्र है। सब चीजें तब स्पष्ट होंगी, जब हम कैग को अपना जवाब देंगे।’ दिल्ली की एक अदालत में जनहित याचिका दायर करने वाली, सेंसरशिप से जुड़े मामलों की एक अन्य कार्यकर्ता टीना शर्मा ने कहा, ‘जब तक सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय हमारी आवाज नहीं सुनता, ऐसी रिपोर्ट आती रहेंगी।’

 

हाल के वर्षों में भी, बोर्ड अपने शीर्ष अधिकारियों के कथित गलत कार्यों में लिप्त पाए जाने के चलते विवादों के घेरे में रहा है। एक फिल्म को हरी झंडी देने के लिए कथित तौर पर 70 हजार रुपए की रिश्वत मांगने वाले पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी राकेश कुमार को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। उनकी पूववर्ती पंकजा ठाकुर भी विवादों में शामिल रहीं। इनमें से एक मामला उनके द्वारा एक फिल्म के मूल्यांकन से जुड़ा था, जिसका निर्देशन  उनके एक करीबी रिश्तेदार ने किया था। उन्होंने हितों के टकराव का मामला होने के बावजूद फिल्म का मूल्यांकन किया।

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