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विभाजन के बाद वतनपरस्त मुसलमानों ने ज्यादा मानसिक प्रताड़ना झेली - नासिरा शर्मा

साहित्योत्सव के चौथेदिन ‘आमने-सामने’ कार्यक्रम में साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता हिंदी लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा, विभाजन की हिंसा से जहां लोग सीधे प्रभावित हुए, वहीं वतनपरस्त मुसलमानों को मानसिक प्रताड़ना ज्यादा झेलनी पड़ी। वे अशोक तिवारी के सवालों के जवाब दे रही थीं।
विभाजन के बाद वतनपरस्त मुसलमानों ने ज्यादा मानसिक प्रताड़ना झेली - नासिरा शर्मा

     तिवारी ने बातचीत शुरू करने से पहले नासिरा शर्मा के परिचय में कहा कि मानदंडों को तोड़कर लिखने वाली नासिरा जी की रचनाओं का आधार घर से बाहर निकल कर संवाद करने की अभिलाषा है। उनकी बोलचाल की भाषा पाठक को बांधती है और पात्र जीवन का हिस्सा बन जाते हैं।

    एक सवाल के जवाब में नासिरा जी ने बताया कि जीवन के उतार-चढ़ावों से भरे अनुभव ही उन्हें रचना के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा, विभाजन में एक हिंसा लोगों ने प्रत्यक्ष झेली तो दूसरे लोगों ने मानसिक हिंसा झेली है। इन वतन परस्त मुसलमानों को लोगों की छींटा-कसी की वजह से कभी मानसिक सुकून नहीं मिला।  लेखन को खाने में बांटने की विरोधी नासिरा ने कहा, मैं पूरी दुनिया के लिए लिखती हूँ आधी दुनिया के लिए नहीं। श्रोता के बंगाल विभाजन के सवाल पर कहा कि विभाजन दोनों देशों के लिए बड़ा त्रासदीपूर्ण था और दोनों तरफ के लोग कभी पूर्ण शांति नहीं पा सके। अफगानिस्तान पर उन्होंने कहा कि मेरे अंदर कई अफगानिस्तान दफन है।

          उत्तर-पूर्व और उत्तरी लेखक सम्मिलन के उद्घाटन भाषण में प्रख्यात अंग्रेज़ी कवि रॉबिन नांगोम ने कहा कि उत्तर-पूर्व का साहित्य जीवंत है और इसके अंदर कोई डर या आतंक नहीं है बल्कि प्रकृति एवं शांति है। यहाँ का लेखन लोक की महत्ता को स्वीकार करता है और उसने हिंसा के प्रतिरोध में कई आश्चर्यजनक बिंब तैयार कर लिए हैं। नई पीढ़ी की कविताओं का स्वर विस्थापन के दर्द को प्रतिबिंबित कर रहा है। क्षेत्र की लोककथाओं को भी नए स्वरूप में पेश किया जा रहा है।

          मशहूर लेखक कुल सैकिया की अध्यक्षता वाले कहानी-पाठ पर केन्द्रित सत्र में बेग अहसास (उर्दू), चमन अरोड़ा (डोगरी), अनो ब्रह्म (बोडो) और ऋषि वशिष्ठ (मैथिली) ने अपनी कहानियों का पाठ किया।

           ‘मेरी रचना मेरा संसार’विषयक सत्र की अध्यक्षता लेखिका उमा वासुदेव ने की। इसमें श्रीप्रकाश मिश्र (हिंदी) ने कहा कि लेखक अपनी स्मृति को ही लिखता है। मुझे विजातीय संस्कृति को निकट से देखने जानने का अवसर मिला जिससे मैं उनके जीवन की संवेदना को पकड़ सका। महाराज कृष्ण संतोषी (कश्मीरी), देवकांत रामचियारी (बोडो)  और क्षेत्री राजेन (मणिपुरी) ने भी अपने आलेख पढ़े।  

          काव्यपाठ सत्र में मधु आचार्य आशावादी (राजस्थानी), युयुत्सु शर्मा (अंग्रेज़ी), इरशाद मगामी (कश्मीरी), सुधा एम. राई (नेपाली), मदन मोहन सोरेन (संताली), ब्रजेश कुमार शुक्ल (संस्कृत), तूलिका चेतिया एन (असमिया), रमेश (मैथिली), ज्योतिष (हिन्दी), नरेन्द्र देबबर्मन (कोकबॅराक), हिरम्य (चकमा) और घनश्याम भद्र (हो) ने अपनी रचनाएं पेश कीं।

          ‘लोक साहित्य: कथन एवं पुनर्कथन’विषयक ‌त्रिदिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन अकादेमी के महत्तर सदस्य मनोज दास और बीज-वक्तव्य लोक साहित्य अध्येता जवाहरलाल हांडू ने दिया। विशेष अतिथि थे अंग्रेज़ी लेखक ताबिश खेर। अध्यक्षीय वक्तव्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी और समाहार चन्द्रशेखर कम्बार ने किया। प्रतिभा राय, एचएस शिवप्रकाश, सोहनदान चारण, ए. अच्युतन आदि उत्सव में मौजूद थे। सांस्कृतिक संध्या में अगरतला के राजा हसन ने बाउल गान किया।       

    अकादेमी सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने वक्ताओं का परिचय, साहित्यकारों/विद्वानों का स्वागत और अंत में आभार व्यक्त किया।    

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