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दृश्य माध्यम की ताकत शब्दों से अधिक है-मोहन अगाशे

दिल्ली में चल रहे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव-2017’ के गुरु कक्षा (मास्टर क्लास) में प्रसिद्ध रंगमंच और फिल्म अभिनेता मोहन अगाशे ने रानावि छात्रों और रंग प्रेमियों के बीच कहा, सच यह है कि प्रदर्शन या‌नी दृश्य माध्यमों की ताकत शब्दों से कहींअधिकहै।
दृश्य माध्यम की ताकत शब्दों से अधिक है-मोहन अगाशे

     नए रंग कलाकारों को लगन के साथ आगे बढ़ने का गुरु मंत्र देते हुए डॉ. अगाशे ने कहा कि यह थिएटर ही है, जिसने जीवन के प्रति मेरे नजरिए को बदल कर रख दिया। दृश्य माध्यम का प्रभाव बेहद सशक्त होता है और यह हर किसी को बहुत तेजी से प्रभावित करता है।

   उन्होंने अपनी थिएटर की यात्रा-चर्चा में बताया कि उनके थिएटर में आने के पीछे यों तो कई कारण थे, पर उनमें से एक खास कारण आर्थिक भी था। स्कूल में अभिनय का प्रशिक्षण निःशुल्क दिया जाता था। वहीं रोजगार के लिए मैंने चिकित्सा क्षेत्र में स्नातक तक की पढ़ाई की। मेरी नज़र में चिकित्सा और थिएटर दोनों मानवीय संवेदना से जुड़ी है। चिकित्सा की पढ़ाई ने मेरे अंदर के थिएटर के ज्ञान को बढ़ाने में और योगदान ही दिया।

   मोहन अगाशे ने कहा- 20 वीं सदी पूरी तरह से प्रिंट और लिखे गए शब्दों के वर्चस्व का काल रहा है। हम यह भूल गए कि जीवन में शब्द बाद में आता है और भाव पहले। ध्वनि और चित्र का माध्यम, शब्द और लेखन के माध्यम से कहीं ज्यादा सशक्त है। नाटक और फिल्म अपना प्रभाव डालने में किताबों से अधिक सफल रहते हैं। सत्यजीत राय ने हमें बताया कि किस तरह से ध्वनि और चित्र का प्रभावशाली प्रयोग फिल्मों के माध्यम से करें। यह थियेटर ही है, जिसने जीवन के प्रति मेरे नजरिए को बदल कर रख दिया। 

   इसके पूर्व हिमांशु कोहली और प्रशांत कुमार के ‘ब्लैकबर्ड’, सुमन शाह का ‘अश्वत्थामा- द वार मशीन’, नावेद ईनामदार का ‘महारथी कर्ण’, डॉ. श्रीपद भट्ट का ‘चित्रा’ और तुर्की के मोहम्मद खिजेली के मूक ड्रामा ‘फीनिक्स’ में भरपूर ड्रामा और इमोशन था, जिसने दर्शकों को आखिरी समय तक बांधे रखा। 

  जन संपर्क टीम के मुताबिक मलेशिया के ‘प्यूटेरी साडांग’ का मंचन पुणे में और तजाकिस्तान के ‘पुल्स कोर्ट’ का मंचन हैदराबाद में किया गया, जिसे रानावि ने दिल्ली के दर्शकों ने लाइव वेबकास्टिंग के जरिए दिखाया।

   ‘निर्देशक से मुलाकात’ कार्यक्रम में ‘आउटकास्ट’ के निर्देशक रणधीर कुमार ने बताया कि उनका नाटक समाज के हाशिए पर पड़े व्यक्ति और समाज के दर्द को समाज के समक्ष रखता है। ‘अकल्प’ के सहायक निर्देश मैनुल हक और ‘अवद्योशेष रजनी’ के निर्देशक ब्रात्य बासु ने अपने-अपने नाटकों में छिपे सामाजिक संदेश की जानकारी दी और रंग मंच के कलाकारों व छात्रों के सवालों का जवाब भी दिया। 

   देवाशीष राय के बंग्ला नाटक ‘इला गुरहिशा, सरन्य रामप्रकाश के कन्नड़ नाटक ‘अक्षयंबरा’, कन्नड़ में ही एम.एल.समागा के ‘बाली वध’, हैप्पी रणजीत का ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ और श्रीलंका के चमिका हथलाहवट्टे के ‘राजा मन्हवाला’  का मंचन आज के आयोजन में शामिल है। 

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